श्रीवृन्दावन धाम
रसिक ब्रजवासियों ने श्री वृन्दावन धाम की उपासना मूल रूप से बतायी है। श्री वृन्दावन के प्रति अनन्य भाव इस
रसिक ब्रजवासियों ने श्री वृन्दावन धाम की उपासना मूल रूप से बतायी है। श्री वृन्दावन के प्रति अनन्य भाव इस
यहाँ प्रवेश करते ही आत्मा की सुप्त-बैटरी स्वत: ही चार्ज होने लगती है। सिग्नल मिलने लगते हैं; यदि यंत्र ठीक
गोवर्धन परिक्रमा……. .श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को भगवान का रूप बताया है और उसी की पूजा करने के लिए सभी
परमात्मा या परमात्मा के भेजे गए पार्षद जन्म से ही दिव्य एवं अलौकिक हुआ करते हैं उनकी दिव्यता अलौकिकता आरम्भ
धन-धन रसिकन-धन गोवर्धन, जाने ब्रह्म लियो बिरमाय।जेहि आश्रित असंख्य विधि, हरि, हर।सोऊ आश्रय लिय येहि गिरिवर।जेहि पूजति जलजा नित निज
“ प्रायः जितने भी वैष्णव जन हैं, वह वर्ष में एक, दो, चार, दस बार वृन्दावन आते ही हैं। वृन्दावन
.एक बार प्रयाग राज का कुम्भ योग था। चारों ओर से लोग प्रयाग-तीर्थ जाने के लिये उत्सुक हो रहे थे।.श्रीनन्द
श्री रंगजी मन्दिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया
श्री ब्रजभूमि प्रेममयी है। श्री ब्रजरज प्रेम प्रदाता है। श्री युगलकिशोर की कृपा से जिस देह में ब्रजरज लिपट गयी
एक संत महाराज एक बार वृन्दावन गएवहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए..जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा