भगवान की भक्ति करना।
आज का प्रभु संकीर्तन।।भगवान को पाने का सर्वोत्तम,सहज और अत्यंत सुलभ मार्ग भक्ति मार्ग है।इस धरा धाम पर आने के
आज का प्रभु संकीर्तन।।भगवान को पाने का सर्वोत्तम,सहज और अत्यंत सुलभ मार्ग भक्ति मार्ग है।इस धरा धाम पर आने के
।। ॐ ।। ईश्वर एक है या अनेक ! वह साकार है या निराकार ! इस विषय के क्रम में
।। ।। नम: पुरुषोत्तमाख्याय नमस्ते विश्वभावन।नमस्तेस्तु हृषिकेश महापुरुषपूर्वज।।१।। येनेदमखिलं जातं यत्र सर्व प्रतिष्ठितम।लयमेष्यति यत्रैतत तं प्रपन्नोस्मि केशवं।।२।। परेश: परमानंद: परात्परतर:
ॐ यानी ओम, जिसे “ओंकार” या “प्रणव” भी कहा जाता है। देखें तो सिर्फ़ ढाई अक्षर हैं, समझें तो पूरे
मनुष्य का विनम्र स्वभाव उसे सबका प्रिय बना देता है। जिस प्रकार आभूषण सबको प्रिय लगते हैं उसी प्रकार व्यक्ति
हे आराध्या राधा ! मेरे मनका तुझमें नित्य निवास।तेरे ही दर्शन कारण मैं करता हूँ गोकुलमें वास॥ तेरा ही रस-तत्त्व
धनदा उवाच।देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्।।१।। देव्युवाच।ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्।।२।। शिव उवाच।पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह
ईश्वर उवाचशतनाम प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व कमलानने।यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती।।१।। ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा
हे शिव आपको हमारा बारम्बार प्रणाम हे महादेव हे करूणानिधान हे शुलपाणी हे कल्याणकारी आपको बारम्बार प्रणाम आपको बारम्बार ।हे
।। जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता। गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।। पालन सुर धरनी अद्भुत