श्रीगणेश-स्तुति
।। (गोस्वामी तुलसीदासजी विरचित विनयपत्रिका से) गाइये गनपति जगजगबंदन।संकर-सुवन भवानी-नंदन।। सिद्धि-सदन, गज-बदन, बिनायक।कृपा-सिंधु, सुन्दर, सब लायक।। मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता।बिद्या-बारिधि, बुद्धि-बिधाता।। माँगत
।। (गोस्वामी तुलसीदासजी विरचित विनयपत्रिका से) गाइये गनपति जगजगबंदन।संकर-सुवन भवानी-नंदन।। सिद्धि-सदन, गज-बदन, बिनायक।कृपा-सिंधु, सुन्दर, सब लायक।। मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता।बिद्या-बारिधि, बुद्धि-बिधाता।। माँगत
एक सुपंथ नाम का धर्मात्मा राजा था, एक बार अयोध्या में संत सम्मेलन होने जा रहा था तो संत सम्मेलन
‘अध्यात्म रामायण’ कहती है कि एक रात जब माता कैकेयी सोती हैं तो उनके स्वप्न में विप्र, धेनु, सुर, संत
ॐ जय जय।श्रीआञ्जनेय।केसरीप्रियनन्दन।वायुकुमार।ईश्वरपुत्र।पार्वतीगर्भसम्भूत।वानरनायक।सकलवेदशास्त्रपारग।सञ्जीवनीपर्वतोत्पाटन।लक्ष्मणप्राणरक्षक।गुहप्राणदायक।सीतादुःखनिवारक।धान्यमाली शापविमोचन।दुर्दण्डीबन्धविमोचन।नीलमेघराज्यदायक।सुग्रीवराज्यदायक।भीमसेनाग्रज।धनञ्जयध्वजवाहन।कालनेमिसंहार।मैरावणमर्दन।वृत्रासुरभञ्जन।सप्तमन्त्रिसुतध्वंसन।इन्द्रजिद्वधकारण।अक्षकुमारसंहार।लङ्किणीभञ्जन।रावणमर्दन।कुम्भकर्णवधपरायण।जम्बुमालिनिषूदन।वालिनिबर्हण।राक्षसकुलदाहन।अशोकवनविदारण।लङ्कादाहक।शतमुखवधकारण।सप्तसागरवालसेतुबन्धन।निराकार-निर्गुण-सगुणस्वरूप।हेमवर्णपीताम्बरधर।सुवर्चलाप्राणनायक।त्रिंशत्कोट्यर्बुदरुद्रगणपोषक।भक्तपालनचतुर।कनककुण्डलाभरण।रत्नकिरीटहारनूपुरशोभित।रामभक्तितत्पर।हेमरम्भावनविहार वक्षताङ्कितमेघवाहक।नीलमेघश्याम।सूक्ष्मकाय।महाकाय।बालसूर्यग्रसन।ऋष्यमूकगिरिनिवासक।मेरुपीठकार्चन।द्वात्रिशदायुधधर।चित्रवर्ण।विचित्रसृष्टिनिर्माणकर्त्रे।अनन्तनाम।दशावतार।अघटनघटनासमर्थ।अनन्तब्रह्मन्।नायक।दुर्जनसंहार।सुजनरक्षक।देवेन्द्रवन्दित।सकललोकाराध्य।सत्यसङ्कल्प।भक्तसङ्कल्पपूरक।अतिसुकुमारदेह।अकर्दमविनोदलेपन।कोटिमन्मथाकार।रणकेलिमर्दन। विजृम्भमाणसकललोककुक्षिम्भर।सप्तकोटिमहामन्त्रतन्त्रस्वरूप।भूतप्रेतपिशाचशाकिनीडाकिनीविध्वंसन।शिवलिङ्गप्रतिष्ठापनकारण।दुष्कर्मविमोचन।दौर्भाग्यनाशन।ज्वरादिसकलरोगहर।भुक्तिमुक्तिदायक।कपटनाटकसूत्रधारिन्।तलाविनोदाङ्कित।कल्याणपरिपूर्ण।मङ्गलप्रद।गानलोल।गानप्रिय।अष्टाङ्गयोगनिपुण।सकलविद्यापारीण।आदिमध्यान्तरहित।यज्ञकर्त्रे।यज्ञभोक्त्रे।षण्मतवैभवसानुभूतिचतुर।सकललोकातीत।विश्वम्भर।विश्वमूर्ते।विश्वाकार।दयास्वरूप।दासजनहृदयकमलविहार।मनोवेगगमन।भावज्ञनिपुण।ऋषिगणगेय।भक्तमनोरथदायक।भक्तवत्सल।दीनपोषक।दीनमन्दार।सर्वस्वतन्त्र।शरणागतरक्षक।आर्तत्राणपरायण।एक असहायवीर।हनुमन् विजयीभव।दिग्विजयीभव।दिग्विजयीभव। ।। इति नीलकृतं श्रीआञ्जनेयस्तोत्रम् ।। Om Jai Jai. Sri Anjaneya. Kesaripriyanandana. Vayukumar.
रं रं रं रक्तवर्णं दिनकरवदनं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालंरं रं रं रम्यतेजं गिरिचलनकरं कीर्तिपञ्चादिवक्त्रम्।रं रं रं राजयोगं सकलशुभनिथिं सप्तभेतालभेद्यंरं रं रं राक्षसान्तं सकलदिशयशं
आज का भगवद चिंतन।भगवान श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं कि इस भौतिक संसार के प्रत्येक पदार्थ में मैं
🕉 नम: शिवायश्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमःॐ श्री काशी विश्वनाथ विजयते सर्वविपदविमोक्षणम् मही पादाघाताद् व्रजति सहसा संशयपदंपदं विष्णोर्भ्राम्यद् भुज-परिघ-रुग्ण-ग्रह-गणम्। मुहुर्द्यौर्दौस्थ्यं यात्यनिभृत-जटा-ताडित-तटाजगद्रक्षायै
जाकी रही भावना जैसी।प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।। श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड की यह चौपाई है। जिसके पास जैसा भाव है,
कहा जाता है कि की जब लंका विजय के लिए नल-नील समुद्र पर सेतु बनाने में लगे थे, तब कई
. एक समय श्रीराम को मुनियों के द्वारा यह समाचार मिलता है कि लंकापति विभीषण द्राविड देश में कैद हैं।