
पुरुषोत्तम स्तोत्रम्
नमस्ते भगवान देव, लोकनाथ जगतपते।क्षीरोदवासिनं देवं शेषभोगानुशायिनम्।। हे भगवान देव, हे जगत के स्वामी, हे क्षीर समुद्र में वास करने

नमस्ते भगवान देव, लोकनाथ जगतपते।क्षीरोदवासिनं देवं शेषभोगानुशायिनम्।। हे भगवान देव, हे जगत के स्वामी, हे क्षीर समुद्र में वास करने

।। जय श्रीहरि ।। मन कभी भी ख़ाली नहीं बैठ सकता, कुछ ना कुछ करना इसका स्वभाव है। अच्छा काम

!! जय श्री कृष्णा राधे राधे!! “छोटा बने सो हरि पावै”भगवान श्री कृष्ण जी ने छोटी उंगली पर ही क्यों
रामशरण जी और दयाशंकर बचपन के दोस्त थे। कृष्ण सुदामा जैसी दोस्ती थी उनकी।रामशरण जी बहुत बड़े जमींदार,कई कारखाने,जमीन के

वृंदावन की गली में एक छोटा सा मगर साफ़ सुथरा,सजा संवरा घर था। एक गोपी माखन निकाल रही है और

गीता सार क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो ? किससे व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हे मार सकता है ? आत्मा

राधे राधे कृष्ण कन्हैया की वंशी का स्वर केवल गोपियों को ही क्यों सुनाई देता था। ब्रज में गोप-ग्वाल नंदबाबा

।। जय श्रीहरि भगवान विष्णु ।। भगवान विष्णु के १६ नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। इसमें मनुष्य को

ॐ मृत्युंजय परेशान जगदाभयनाशन।तव ध्यानेन देवेश मृत्युप्राप्नोति जीवती।। वन्दे ईशान देवाय नमस्तस्मै पिनाकिने।नमस्तस्मै भगवते कैलासाचल वासिने।आदिमध्यांत रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे।।

(अधिकमास में इस स्तोत्र का नित्य पाठ करके अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करें। भगवान श्रीहरि विष्णु आप सभी का मङ्गल करेंगे।)