
श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी: “नागपंचमी”
“नागपंचमी” कथा प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। एक दिन पीली

“नागपंचमी” कथा प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। एक दिन पीली

हमे पहले परम पिता परमात्मा का बनना होगा। परमात्मा से प्रेम करना होगा। एक ही भगवान पर विस्वास करना होगा।

पता नहीं ये सामने वाला सेठ हफ्ते में 3-4 बार अपनी चप्पल कैसे तोड़ लाता है?” मोची बुदबुदाया,नजर सामने की

मेरे भगवान नाथ मेरे स्वामी हे प्राण नाथ क्या मिलन भी होगा या ये जीवन ऐसे ही बह जाऐगा। हे

हम नमस्कार करते हैं तब हाथ जोड़कर शिश नवा कर नतमस्तक होते हैं नमस्कार में दो हाथ दस ऊंगलियां एक

परमात्मा को दिल में बिठा ले। हे प्रभु हे स्वामी हे भगवान् नाथ आज ये दिल तुमसे मिलने के लिए

प्रभु! तीनो लोकों के स्वामी है, अरे वह तो जगत के स्वामी है ,अरे भैया जगत को प्रभु ने ही

एक बार पश्चिम बंगाल के श्रीखण्ड नामक स्थान पर भगवान के एक भक्त, श्रीमुकुन्द दास रहते थे। श्रीमुकुन्द दास के

मैं तो आरती उतारूं रे, संतोषी माता की । जय जय संतोषी माता, जय जय मां ॥ बड़ी ममता है

इस शरीर से ही हम परम तत्व परमात्मा तक पहुंचते हैं अध्यात्म के मार्ग में करके देखने पर स्वयं ही