
अन्दर बैठकर स्वामी नाम धुन सुनाते
भगवान को भाव से भजे हे प्रभु हे दीनदयाल हे दीनानाथ हे प्राण नाथ तुम मेरे स्वामी भगवान् नाथ हो
भगवान को भाव से भजे हे प्रभु हे दीनदयाल हे दीनानाथ हे प्राण नाथ तुम मेरे स्वामी भगवान् नाथ हो
एक उच्च कोटि के संत के श्री मुख से हमने सुना वो कह रहे थे….हमने 10 साल की आयु मे
एक राजा थे। उसके पास एक बड़े विद्वान् पण्डित आया करते थे। वे प्रतिदिन राजा को कथा सुनाते थे। उनको
भगवान जी तुम कहते हो मांग ले ये तन मन ये आत्मा में तुम्हारा निवास है। सब कुछ तुम ही
दीनबंधु कृपासिंधु कृपा बिंदु दो प्रभो।उस कृपा की बूंद से फिर बुद्धि ऐसी हो प्रभो।वृत्तियां दूत गामिनी हो, जा सम्मावे
एक जुलाहा और एक ब्राह्मण की आपस में गहरी मित्रता थी। दोनों वैष्णव थे। और आपसी बैठक में
एक बार एक आदमी को अपने बाग़ में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून (छता)
एक दिन मैं सड़क से जा रहा था, रास्ते में एक जगह बोर्ड लगा था, ईश्वरीय किराने की दुकान…!! मेरी
ग्रथों में पढते हैं भगवान से मिलने के लिए विरह वेदना प्रकट करो तभी भगवान मिलेगे । ये दिल वेदना
ईश्वर आलोक, आनंद और अमृत के परम अनुभव का नाम है। ईश्वर को कहीं बाहर खोजा या पाया नहीं जा