
मैं श्रीकृष्णसे मिलने जा रहा हूँ
लगभग सौ वर्ष पहलेकी बात है। सौराष्ट्रके प्रसिद्ध वैष्णव कवि अभिनव नरसी मेहता- दयाराम भाईने श्रीकृष्ण लीलापर सरस गान लिखकर

लगभग सौ वर्ष पहलेकी बात है। सौराष्ट्रके प्रसिद्ध वैष्णव कवि अभिनव नरसी मेहता- दयाराम भाईने श्रीकृष्ण लीलापर सरस गान लिखकर

‘देवराज इन्द्र तथा देवताओंको प्रार्थना स्वीकार करके महर्षि दधीचिने देह त्याग किया। उनकी अस्थियाँ लेकर विश्वकर्माने वज्र बनाया। उसी वज्रसे

कनखलके समीप गङ्गा-किनारे थोड़ी दूरके अन्तरसे महर्षि भरद्वाज तथा महर्षि रैभ्यके आश्रम थे। दोनों महर्षि परस्पर घनिष्ठ मित्र थे। रैभ्यके

महर्षि जरत्कारुने पितरोंकी आज्ञासे वंशपरम्परा चलानेके लिये विवाह करना भी स्वीकार किया तो इस नियमके साथ कि वे तभी विवाह

दुरात्मा रावणने मारीचको माया-मृग बननेके लिये बाध्य किया। मायासे स्वर्ण मृग बने मारीचका आखेट करने धनुष लेकर श्रीराम उसके पीछे

एक बार श्रीनारदजीके मनमें यह दर्प हुआ कि मेरे समान इस त्रिलोकीमें कोई संगीतज्ञ नहीं। इसी बीच एक दिन उन्होंने

उद्दण्डताका दण्ड पूर्वकालमें हिरण्याक्षका पुत्र महिष नामक दैत्य हुआ था, जिसने भैंसेका रूप धारण करके ही समस्त त्रिलोकीका शासन किया

वनमें एक मन्दिर था श्रीशंकरजीका। भीलकुमार कण्णप्प आखेट करने निकला और घूमता-घामता उस मन्दिरतक पहुँच गया। मन्दिरमें भगवान् शिवकी पूरी

शिवाजी, तू फरिश्ता है, फरिश्ता ! शिवाजी महाराज एक दिन रास्ता देख रहे थे अपने सेनापतिका । वह आया तो

बहुत पुराने समयकी बात है। एक बार पृथ्वीपर बारह वर्षोंतक वर्षा नहीं हुई संसारमें घोर अकाल पड़ गया। सभी लोग