अर्जुनकी शरणागतवत्सलता और श्रीकृष्णके साथ युद्ध
एक बार महर्षि गालव जब प्रातः सूर्याय प्रदान कर रहे थे, उनकी अञ्जलिमें आकाशमार्गसे जाते हुए चित्रसेन गन्धर्वको थूकी हुई
एक बार महर्षि गालव जब प्रातः सूर्याय प्रदान कर रहे थे, उनकी अञ्जलिमें आकाशमार्गसे जाते हुए चित्रसेन गन्धर्वको थूकी हुई
बादशाह अकबर विद्वानों, साधुओं और फकीरोंका सम्मान करते थे। उनके यहाँ प्रायः देशके विभिन्न भागोंसे विद्वान् आया करते थे। किसी
‘सीडलीट्जका पता चला?’ प्रशियाके सम्राट् फ्रेडरिक महान् वंशी-वादनमें मस्त थे। रातकी कालिमा अपने पूरे उत्कर्षपर थी। वे अपने शिबिरमें बैठकर
बालक श्रीशंकराचार्यने विद्याध्ययन समाप्तकर संन्यास लेना चाहा; परंतु जब उन्होंने मातासे आज्ञा माँगी, तब माताने नाहीं कर दी। शंकर माताके
सख्तीसे अधिक स्नेह एक खेतमें कुछ मजदूर निराई-गुड़ाईका काम कर रहे थे। एक घण्टा काम करनेके बाद वे सब बैठकर
हिपकलिके वंश के पुत्र सुन्द और उपसुन्द अत्यन्त पराक्रमी तथा उद्धत थे। वे अपने समयमें दैत्योंके मुखिया थे। दोनों सगे
मथुराकी सर्वश्रेष्ठ नर्तकी, सौन्दर्यकी मूर्ति वासवदत्ताकी दृष्टि अपने वातायनसे राजपथपर पड़ी और जैसे वहीं रुक गयी। पीत-चीवर ओढ़े, भिक्षापात्र लिये
एक महात्मा थे। वे राधाष्टमीका बड़े समारोहके। साथ बहुत सुन्दर उत्सव मनाते। एक दिन एक आदमी उनके पास आया और
कलकत्तेके सुप्रसिद्ध सुधारक विद्वान् श्रीरामतनु लाहिड़ी उन दिनों कृष्णनगर कालिजियट स्कूलके प्रधानाध्यापक थे। वे एक दिन कलकत्तेमें सड़ककी एक पटरीसे
प्राचीन कालमें सृञ्जय नामके एक नरेश थे। उनके कोई पुत्र नहीं था, केवल एक कन्या थी । पुत्रप्राप्तिकी इच्छासे उन्होंने