बलिप्रथा अधर्म है
बलिप्रथा अधर्म है ढाई सौ वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्रमें जनमे योगिराज वनखण्डी महाराज परम विरक्त एवं सेवाभावी सन्त थे। उन्होंने दस
बलिप्रथा अधर्म है ढाई सौ वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्रमें जनमे योगिराज वनखण्डी महाराज परम विरक्त एवं सेवाभावी सन्त थे। उन्होंने दस
ईश्वरका सच्चा भक्त एक महापुरुषने रातको स्वप्नमें एक देवदूतको कुछ लिखते देखा। उसने पूछा-‘देव! आप इस सुन्दर ग्रन्थमें क्या लिख
जब भगवान् विष्णुने वामनरूपसे वलिसे पृथ्वी तथा स्वर्गका राज्य छीनकर इन्द्रको दे दिया, तब कुछ ही दिनोंमें राज्यलक्ष्मीके स्वाभाविक दुर्गुण
संवत् 1700 के लगभग जैसलमेर राज्यान्तर्गत वारू ग्राममें चौहान क्षत्रिय माधवसिंहजी हुए थे स्वभावसे बहुत ही रजोगुणी थे। डाकुओंका संघटन
वचन देकर उसका पालन न करनेसे नीच योनि प्राप्त होती है प्राचीन कालकी बात है, दो व्यक्ति आपसमें बहुत अच्छे
सेठ रमणलाल भगवान् के भक्त तथा साधुस्वभावके थे ।। एक बार रसोइयाने भूलसे हलुएमें चीनीकी पुरुष जगह नमकका पानी बनाकर
बूढ़ी धायका आशीर्वाद सन्त-महापुरुषका जीवन-चरित युवा वर्गके चरित्र निर्माणमें काफी हदतक सहायक सिद्ध हो सकता है। और उनके विकास-पथको आलोकित
सत्संगका प्रभाव प्राचीन कालमें कठिन नियमोंका पालन करनेवाले एक ब्राह्मण थे, जो ‘पृथु’ नामसे सर्वत्र विख्यात थे। वे सदा सन्तुष्ट
डॉ0 राधाकृष्णन् और स्टॉलिन डॉ0 राधाकृष्णन् प्रसिद्ध दार्शनिक और भारतके राष्ट्रपति थे। एक बार वे रूसके तानाशाह स्टालिनसे मिले। डॉ0
सर्वत्र इंटका जवाब पत्थर ही नहीं होता आचार्य कृपाशंकरजी के श्रीमुख सुनी गयी एक भावपूर्ण कथाका उल्लेख किया जा रहा