
शास्त्रीजीकी नियमनिष्ठा
शास्त्रीजीकी नियमनिष्ठा यह घटना उन दिनोंकी है, जब लालबहादुर शास्त्री भारतके गृहमन्त्री थे। शास्त्रीजीकी सादगी सर्वविदित है। वे स्वयंपर अथवा

शास्त्रीजीकी नियमनिष्ठा यह घटना उन दिनोंकी है, जब लालबहादुर शास्त्री भारतके गृहमन्त्री थे। शास्त्रीजीकी सादगी सर्वविदित है। वे स्वयंपर अथवा

श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागरके यहाँ खुदीराम बोस नामके एक सज्जन पधारे। विद्यासागरने उन्हें नारंगियाँ दीं। खुदीरामजी नारंगियोंको छीलकर उसकी फाँकें चूस

सौराष्ट्र में थानगढ़ नामक छोटेसे गाँवमें बेचर भक्त नामक एक सरल हृदय परम भक्त रहते थे। इनके घर एक बार

एक मुसलमान फकीर थे हाजी महम्मद। वे साठ बार मकाशरीफ हज कर आये थे और प्रतिदिन पाँचों वक्त नियमसे नमाज

संत डोमिनिकने तेरहवीं शताब्दीके स्पेनको अपनी स्थितिसे पवित्र किया था। वे बड़े उदार, दानी और परसेवाव्रती थे। दूसरोंकी सेवासे उन्हें

गांधीजीके बचपनके एक मित्र थे – शेख मेहताब साहब। इन मित्रके कारण उनमें पहले अनेक बाल सुलभ दुर्गुण भी आ

भीमसेनको अपनी शक्तिका बड़ा गर्व था। एक बार वनवास कालमें जब ये लोग गन्धमादन पर्वतपर रह रहे थे, तब द्रौपदीको

परम भागवत श्रीधर स्वामी पूर्वाश्रममें दिग्विजयी पण्डित थे। एक समय वे दिग्विजय करके घर लौट रहे थे। रास्तेमें डाकुओंने आपको

न्यायकी अद्भुत युक्ति एक आश्रम में सूतका एक व्यापारी अपना माल लिये सायंकाल पहुँचा और रात्रि विश्रामकी आज्ञा चाही। गुरुने

श्रीरामकृष्ण परमहंसके गलेमें नासूर हो गया था। उस समय श्रीशशधर तर्कचूड़ामणि परमहंसदेवके पास आये थे। उन्होंने कहा – ” आप