राजाके पापसे प्रजाका विनाश होता है
राजाके पापसे प्रजाका विनाश होता है बृहस्पतिजी देवताओंके गुरु हैं। एक बार वे इन्द्रके अवहेलनापूर्ण व्यवहारसे खिन्न हो गये। तब
राजाके पापसे प्रजाका विनाश होता है बृहस्पतिजी देवताओंके गुरु हैं। एक बार वे इन्द्रके अवहेलनापूर्ण व्यवहारसे खिन्न हो गये। तब
कोई राजा वनमें आखेटके लिये गया था। थककर वह एक वृक्षके नीचे रुक गया। वृक्षकी डालपर एक कौआ बैठा था।
एक बार एक दरिद्र ब्राह्मणके मनमें धन पानेकी तीव्र कामना हुई। वह सकाम यज्ञोंकी विधि जानता था; किंतु धन ही
कांग्रेसका 26 वाँ अधिवेशन मद्रासमें हो रहा था। गांधीजी श्रीनिवास आयंगरके मकानपर ठहरे थे। वे उन दिनों प्रायः राजनीतिसे अलग
प्रायः भगवान् श्रीकृष्णकी पटरानियाँ व्रजगोपिकाओंके नामसे नाक-भौं सिकोड़ने लगतीं। इनके अहंकारको भङ्ग करनेके लिये प्रभुने एक बार एक लीला रची।नित्य
कठिन समयमें भी तिलक महाराजका विनोदी स्वभाव बना ही रहता। समयकी कठिनता उनपर कुछ भी असर नहीं करती थी। उनका
[3] अस्पृश्य बुद्ध शिष्यसहित सभामें विराजमान थे, उसी समय बाहर खड़ा कोई व्यक्ति बोरसे बोला “क मुझे सभामें बैठने की
लोकजीवनकी बोधकथाएँ ‘न्याय होय तो असो’ परिवारमें सामान्य चर्चा चल रही थी। तब एक बात न्याय सम्बन्धी निकली कि न्याय
एक समयकी बात है। महात्मा ईसा अपने शिष्यों से घिरे हुए एक स्थानपर विश्राम कर रहे थे। कुछ देर पहले
रोजन गाँवमें एक ब्राह्मण नित्य बात-बातपर पत्नी से झगड़ता और जब-तब कहता नहीं मानोगी तो संतोबा पवारके पास चला जाऊँगा;