Hindi Story

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सत्संकल्प (1)

उसका नाम श्रुतावती था; वह महर्षि भरद्वाजकी स्नेहमयी कन्या थी, बालब्रह्मचारिणी थी; उसमें यौवन था, रूप और रस था; पर

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दुर्जन-सङ्गका फल

कोई राजा वनमें आखेटके लिये गया था। थककर वह एक वृक्षके नीचे रुक गया। वृक्षकी डालपर एक कौआ बैठा था।

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पेट-दर्दकी विचित्र औषध

प्रायः भगवान् श्रीकृष्णकी पटरानियाँ व्रजगोपिकाओंके नामसे नाक-भौं सिकोड़ने लगतीं। इनके अहंकारको भङ्ग करनेके लिये प्रभुने एक बार एक लीला रची।नित्य

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विपत्तिमें भी विनोद

कठिन समयमें भी तिलक महाराजका विनोदी स्वभाव बना ही रहता। समयकी कठिनता उनपर कुछ भी असर नहीं करती थी। उनका

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अस्पृश्य

[3] अस्पृश्य बुद्ध शिष्यसहित सभामें विराजमान थे, उसी समय बाहर खड़ा कोई व्यक्ति बोरसे बोला “क मुझे सभामें बैठने की

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लोकजीवनकी बोधकथाएँ

लोकजीवनकी बोधकथाएँ ‘न्याय होय तो असो’ परिवारमें सामान्य चर्चा चल रही थी। तब एक बात न्याय सम्बन्धी निकली कि न्याय

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भगवत्-प्रेम

एक समयकी बात है। महात्मा ईसा अपने शिष्यों से घिरे हुए एक स्थानपर विश्राम कर रहे थे। कुछ देर पहले

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