शिवकी कृपाके बिना काशीवास सम्भव नहीं
शिवकी कृपाके बिना काशीवास सम्भव नहीं दक्षिण समुद्रके तटपर सेतुबन्धतीर्थके समीप कोई धनंजय नामवाला वैश्य रहता था। वह अपनी माताका
शिवकी कृपाके बिना काशीवास सम्भव नहीं दक्षिण समुद्रके तटपर सेतुबन्धतीर्थके समीप कोई धनंजय नामवाला वैश्य रहता था। वह अपनी माताका
संगतिका प्रभाव किसी गाँव में एक कुख्यात चोर रहता था। उसनेकई चोरियाँ और हत्याएँ की थीं। उसका एक दोस्त था,जो
स्वर्गीय काश्मीरनरेश महाराज प्रतापसिंहजी बड़े ही कट्टर आस्तिक, धर्मपरायण तथा गो-ब्राह्मणोंके अनन्य भक्त थे। ब्राह्मणोंको देखते ही खड़े हो जाते
एक बार व्यासजीके मनमें ब्याहकी अभिलाषा हुई। उन्होंने जाबालि मुनिसे कन्या माँगी। जाबालिने अपनी चेटिका नामकी कन्या उन्हें दे दी।
बादशाह अकबर बहुत उत्सुक था अपने सङ्गीताचार्य तानसेनके गुरु स्वामी श्रीहरिदासजीका सङ्गीत सुननेके लिये । परंतु वे परम वीतराग व्रजभूमि
जो पहले था, अब भी है और सदा रहेगा, वही ‘सत्’ है; जिसके सुननेसे हित होता है, ऐसे वृत्तान्तको भी
कटड़ा बँधा है सारंगपुर अच्छा बड़ा गाँव था। नहरका क्षेत्र होनेके कारण पानीकी कमी न थी। इसलिये फसलें अच्छी होती
न्यायका आदर्श इंगलैंडमें चतुर्थ हैनरीका शासन था। उस समय पाँचवाँ हैनरी युवराजपदपर था। एक बार उसका एक नौकर किसी अपराधमें
(3) नम्रता एवं सादगीके प्रतीक महात्मा गाँधी राजकोटमें काठियावाड़ राज्य प्रजा परिषद्का अधिवेशन हो रहा था। बापू अन्य नेताओंके साथ
‘अरे नामू! तेरी धोतीमें खून कैसे लग रहा है?’ ‘यह तो माँ!’ मैंने कुल्हाड़ीसे पगको छीलकर देखा था।’ माँने धोती