
समर्थ होकर भी चिकित्सा न करनेवाला निन्दाका पात्र होता है
समर्थ होकर भी चिकित्सा न करनेवाला निन्दाका पात्र होता है अभिमन्युके पुत्र राजा परीक्षित् धर्मके अनुसार इस पृथ्वीका पालन करते

समर्थ होकर भी चिकित्सा न करनेवाला निन्दाका पात्र होता है अभिमन्युके पुत्र राजा परीक्षित् धर्मके अनुसार इस पृथ्वीका पालन करते

क्या हुआ जो स्थूलभद्र पहिले अत्यन्त विलासी थे और उन्होंने बारह वर्ष नर्तकी कोशाके यहाँ व्यतीत किये थे। जब उनके

संत इगनाशियस लायलाके जीवनकी एक घटना है। उनकी कृपासे एक भयानक व्यभिचारी पुण्यात्मा हो गया। रातका समय था। बड़े जोरका

विनोबासे ‘सन्त विनोबा’ सन् 1912 ई0 की यह बात है। बडोदरा शहरके दो मित्र आपसमें बातें कर रहे थे। एक

भगवान् बुद्धका एक पूर्ण नामक शिष्य उनके समीप एक दिन आया और उसने तथागतसे धर्मोपदेश प्राप्त करके ‘सुनापरंत’ प्रान्तमें धर्मप्रचारके

गुरु नानकदेवजी यात्रा करते हुए कराची, बिलोचिस्तानके स्थलमार्गसे मक्का पहुँच गये थे। जब रात्रि हुई, तब वे काबाकी परिक्रमामें काबाकी

पिछली शताब्दीकी बात है। एक फ्रेंच व्यापारी जिसका नाम लबट था, दैवयोगसे बीमार पड़ गया और आडर नदीके तटपर एक

गीतगोविन्दके कर्ता भक्तश्रेष्ठ महाकवि जयदेव तीर्थयात्राको निकले थे। एक नरेशने उनका बहुत सम्मान किया और उन्हें बहुत सा धन दिया

कुछ वर्ष पूर्वकी घटना है। एक सेठजी गाँजा पीनेकी आदतसे लाचार थे। वे एक बार एक संन्यासीके पास गये और

लालच बुरी बला है – वृद्ध व्याघ्र-विप्रकथा (श्रीशरद कौटिल्यजी मुदगिल) एक समय किसी वनमें एक बूढ़ा बाघ स्नानकर हाथमें कुशा