
सद्गुरुकी सीख
सद्गुरुकी सीख गुरुवर ‘सप्तमनाथजी’ नालन्दा विश्वविद्यालयके आचार्यरत्न थे, वे गुरुदेव ही नहीं, शिष्योंको ही अपना ‘देव’ माननेवाले सच्चे ‘शिष्यदेव’ थे,

सद्गुरुकी सीख गुरुवर ‘सप्तमनाथजी’ नालन्दा विश्वविद्यालयके आचार्यरत्न थे, वे गुरुदेव ही नहीं, शिष्योंको ही अपना ‘देव’ माननेवाले सच्चे ‘शिष्यदेव’ थे,

बड़ी मीठी लगती है चाटुकारिता और एक बार जब चाटुकारोंकी मिथ्या प्रशंसा सुननेका अभ्यास हो जाता है, तब उनके जालसे

सेवा ही भक्ति है महिला सन्त राबिया पशु-पक्षियों, असहायों और रोगियोंकी सेवामें हमेशा तत्पर रहा करती थीं। यात्रा करती हुई

मधुर कवि तिरुक्कोलूर नामक स्थानमें एक सामवेदी ब्राह्मणके यहाँ उत्पन्न हुए थे। ये वेदके अच्छे ज्ञाता थे; किंतु इन्होंने सोचा

शम्स तबरेज जय हिन्दुस्तान आये तब हिन्दूकुशके पास उनको एक महात्मा मिले। महात्माने उनको आत्मस्वरूपका उपदेश किया। तदनन्तर शम्स पंजाब

फ्रान्सका राजा हेनरी चतुर्थ एक दिन पेरिस नगरमें अपने अङ्गरक्षकों तथा उच्चाधिकारियोंके साथ कहीं जा रहा था। मार्गमें एक भिक्षुकने

सुशील नामके एक ब्राह्मण थे। उनके दो पुत्र थे। बड़ेका नाम था सुवृत्त और छोटेका वृत्त। दोनों युवा थे। दोनों

गांधीजीने जब दक्षिण अफ्रीकामें आश्रम खोला था, तब अपना सर्वस्व वहाँके आश्रम अर्थात् देशवासियोंको दे दिया। गोकी नामकी इनकी बहिन

देवगुरु महर्षि बृहस्पतिके पुत्र कचने युवा होते. ही निश्चय किया कि ‘प्राणीका पहला कर्तव्य है जन्म-मरणके पाशंसे छुटकारा पा लेना।’

एक गिलास दूध एक लड़का अपने स्कूलकी फीस भरनेके लिये दरवाजे दरवाजे कुछ सामान बेचा करता था। एक दिन उसका