
अहंकार
अहंकार किसी समयकी बात है, रामनगरमें एक वृद्ध भिखारी रहता था। वह सड़कके किनारे बैठकर भीख माँगता था। उसका स्थान

अहंकार किसी समयकी बात है, रामनगरमें एक वृद्ध भिखारी रहता था। वह सड़कके किनारे बैठकर भीख माँगता था। उसका स्थान

पट्टन-साम्राज्यके महामन्त्री उदयनके पुत्र बाहड़ जैनोंके शत्रुञ्जयतीर्थका पुनरुद्धार करके दिवंगत पिताकी अपूर्ण इच्छा पूरी कर देना चाहते थे। तीर्थोद्धारका कार्य

पटना शहरमें कोई ब्राह्मण रहते थे। उनका नियम था – प्रतिदिन एक ब्राह्मणको भोजन कराके तब स्वयं भोजन करते ।

हरगिज नहीं करेंगे एक था राक्षस उसने एक आदमीको पकड़ लिया था। वह उससे बराबर काम लेता रहता था। जब

सत्कर्मपर आस्था बनाये रखिये रामगंगा नदीके तटपर एक शिवमन्दिर था। उसमें एक पण्डित और एक चोर रोज आते थे। पण्डितजी

बंगालके एक छोटे से रेलवे स्टेशनपर ट्रेन खड़ी हुई। स्वच्छ धुले वस्त्र पहिने एक युवकने ‘कुली! कुली!’ पुकारना प्रारम्भ किया।

एक बौद्ध ब्रह्मचारी था। अवस्था बीस वर्षकी होगी । चतुर तो था ही, ज्ञानार्जनमें भी कुशल और तत्पर था। वह

‘टन्-टन्-टन्’ गिर्जाघरकी घंटी बजते ही तीनों मित्रोंने अचानक आमोद-प्रमोदसे मन फेर लिया। फलैंडरस जनपदमें किसी व्यक्तिकी मृत्युकी सूचना दी घण्टी-नादने

कुसंगका परिणाम गंगाजी के किनारे गृध्रकूट नामक पर्वतपर एक विशाल पाकड़ वृक्ष था। उसके खोखले भाग (कोटर) में एक अन्धा

‘केहि कर हृदय क्रोध नहिं दाहा’ व्याकरणशास्त्र के शिरोमणि आचार्य महर्षि पाणिनि देवी दाक्षीके पुत्र एवं आचार्य उपवर्षके शिष्य थे।