
स्वभाव बदलो
[4] स्वभाव बदलो संत अबू हसनके पास एक व्यक्ति आया और बोला- ‘महाराज, मैं गृहस्थीके झंझटोंसे परेशान हो उठा हूँ।

[4] स्वभाव बदलो संत अबू हसनके पास एक व्यक्ति आया और बोला- ‘महाराज, मैं गृहस्थीके झंझटोंसे परेशान हो उठा हूँ।

अप्युन्नतपदारूढपूज्यान् नैवापमानयेत्। इक्ष्वाकूणां ननाशाग्नेस्तेजो वृशावमानतः ॥ (नीतिमञ्जरी 78) इक्ष्वाकु वंशके महीप त्रिवृष्णके पुत्र त्र्यरुणकी अपने पुरोहितके पुत्र वृशजानसे बहुत पटती

भारतवासियोंके समान ही अरब भी अतिथिका सम्मान करनेमें अपना गौरव मानते हैं। अतिथिका स्वागत-सत्कार वहाँ कर्तव्य समझा जाता है। अरबलोगोंकी

सिसलीके सिराक्यूज नगरके राजा ड्योंनिसियसने है सामान्य अपराधमें डेमन नामके एक युवकको प्राणदण्डकी आज्ञा दे दी। डेमनने प्रार्थना की- ‘मुझे

भगवान्की भक्तिमें तल्लीन नामदेवका घरसे बिलकुल ही ध्यान जाता रहा। उनकी पत्नी राजाईको पुत्र भी हो चुका था। घर दाने-दानेके

महाभारत युद्धके 10 वें दिन भीष्मपितामहके ही बतलाये मार्गसे शिखण्डीकी आड़ लेकर अर्जुनने उन्हें घायल कर दिया और अन्ततोगत्वा उन्हें

हाँ, मेरे पास 40 अशर्फियाँ हैं ! बात है कोई 900 साल पुरानी । ईरान देशमें एक स्थान है जीलान।

पवित्र सह्याचलके अञ्चलमें पहले कोई करवीरपुर नामका एक नगर था। वहाँ धर्मदत्त नामका एक पुण्यात्मा ब्राह्मण रहता था। एक बार

किसी नरेशके मनमें तीन प्रश्न आये- 1. प्रत्येक कार्यके करनेका महत्त्वपूर्ण समय कौन-सा ? 2. महत्त्वका काम कौन-सा ? 3.

किसी शहर में एक वेश्या थी। उसका नाम था जीवन्ती। उसे कोई संतान न थी। इसलिये उसने एक सुग्गेका बच्चा