
दण्डमें ईखका खेत
दण्डमें ईखका खेत समर्थ गुरु श्रीरामदास थे छत्रपति शिवाजी महाराजक गुरु । एक बार वे अपने चेलोंके साथ शिवाजीके पास

दण्डमें ईखका खेत समर्थ गुरु श्रीरामदास थे छत्रपति शिवाजी महाराजक गुरु । एक बार वे अपने चेलोंके साथ शिवाजीके पास

कर्णका वास्तविक नाम तो वसुषेण था। माताके गर्भसे वसुषेण दिव्य कवच और कुण्डल पहिने उत्पन्न हुए थे। उनका यह कवच,

प्राचीन अरबनिवासियोंमें हातिम ताईका नाम अत्यन्त प्रसिद्ध है। वह अपनी अमित दातृत्व-शक्ति किंवा सतत दानशीलताके लिये बड़ा विख्यात था। एक

एक महिला थी। उसका नाम था कान्हबाई वह श्रीकृष्णके बाल रूपकी भक्ति करती थी। कहा जाता है कि जब वह

(5) सेवककी सूझ-बूझका प्रभाव एक राजाके पास तीन मूर्तियाँ थी। एक दिन एक राजाके पास तीन मूर्तियाँ थी। एक दिन

बाणेश्वर महादेवके समक्ष विद्यापति मधुर कण्ठसे कीर्तन करते रहते और आँखोंसे झर-झर अश्रु झरता रहता कखन हरब दुख मोर। हे

महाप्रभु यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गये कि भगवद्-विग्रहके राजभोगके लिये द्रव्यका अभाव हो चला है। ‘सोनेकी कटोरी गिरवी रख दी

तिलक महाराजके एक मित्रने बातचीतके प्रसङ्गमें उनसे कहा- ‘बलवंतराव स्वराज्य होनेपर आप कौन सा काम अपने हाथमें लेंगे-आप प्रधानमन्त्री बनेंगे

कहा जाता है कि जब लंका-विजयके लिये नल नील समुद्रपर सेतु बनानेमें लगे थे और अपार वानर भालुसमुदाय गिरिशिखर तथा

एक सुन्दर स्वच्छ जलपूर्ण सरोवर था; किंतु दुष्ट प्रकृतिके लोगोंने उसके समीप अपने अड्डे बना लिये थे। सरोवरके एक कोनेपर