
मठका महंत बनना अपनेको नरकमें गिराना है
मठका महंत बनना अपनेको नरकमें गिराना है मर्यादापुरुषोतम महाराज श्रीरामको राजसभा इन्द्र यम और वरुण सभा समक्ष थी। उनके राज्यमें

मठका महंत बनना अपनेको नरकमें गिराना है मर्यादापुरुषोतम महाराज श्रीरामको राजसभा इन्द्र यम और वरुण सभा समक्ष थी। उनके राज्यमें

आत्मगौरवका आनन्द राजा भोजने नगरवासियोंको एक सार्वजनिक भोज दिया। लाखों लोग भाँति-भाँतिके मिष्टान्नों-पकवानोंको उदरस्थकर तृप्त हुए। अपनी उदारताकी चर्चा एवं

सरोयोगी अथवा पोयगै आळवार, भूतत्ताळवार और वार ये तीनों ही अद्भुत ज्ञानी एवं भगवान्के धक थे। ये निर्लोभी और भगवान्के

नेपोलियन महान् सम्राट् होनेके अनन्तर एक महिलाके साथ पेरिसमें घूमने निकले थे। वे एक पतले रास्तेसे जा रहे थे। महिला

प्राचीनकालमें देव-ब्राह्मणनिन्दक एक प्रसिद्ध जुआरी था। वह महापापी तथा व्यभिचार आदि अन्य दुर्गुणोंसे भी दूषित था। एक दिन कपटपूर्वक जूएसे

सीखनेकी धुन यह घटना सन् 1947 ई0 के आस-पासकी है। लेस्टर वण्डरमैन नामक युवक न्यूयॉर्ककी एक विज्ञापन एजेंसीमें काम कर

संस्कारोंका बालमनपर प्रभाव सत्य एवं सदाचारका पालन करनेमें सत्संगकी तरह बाल्यकालके संस्कारोंका भी बड़ा हाथ होता है। एक साधुको एकबार

लन्दनके वेस्ट मिनिस्टरके विशाल मन्दिरमें आइजक न्यूटनकी समाधि है। वहाँ बहुत-से स्त्री-पुरुष और बच्चे उसकी समाधिके पास जाकर कुछ क्षण

गुरुकी अवहेलनासे राक्षसयोनिकी प्राप्ति सत्ययुगमें एक ब्राह्मण थे, जिन्हें धर्म-कर्मका विशेष ज्ञान था। उनका नाम था सोमदत्त। वे सदा धर्मके

एक साधुकी गाय किसीने चुरा ली। जब लोग गाय ढूँढ़ने लगे, तब साधु बोले- ‘गाय ले जाते समय मैंने चोरको