
मारे शरमके चुप!
गांधीजीके बचपनके एक मित्र थे – शेख मेहताब साहब। इन मित्रके कारण उनमें पहले अनेक बाल सुलभ दुर्गुण भी आ

गांधीजीके बचपनके एक मित्र थे – शेख मेहताब साहब। इन मित्रके कारण उनमें पहले अनेक बाल सुलभ दुर्गुण भी आ

भीमसेनको अपनी शक्तिका बड़ा गर्व था। एक बार वनवास कालमें जब ये लोग गन्धमादन पर्वतपर रह रहे थे, तब द्रौपदीको

परम भागवत श्रीधर स्वामी पूर्वाश्रममें दिग्विजयी पण्डित थे। एक समय वे दिग्विजय करके घर लौट रहे थे। रास्तेमें डाकुओंने आपको

‘कर्मफल तो भोगना ही पड़ता है’ मार्गमें एक घायल सर्प तड़फड़ा रहा था। सहस्रों चींटियाँ उससे चिपटी थीं। पाससे एक

न्यायकी अद्भुत युक्ति एक आश्रम में सूतका एक व्यापारी अपना माल लिये सायंकाल पहुँचा और रात्रि विश्रामकी आज्ञा चाही। गुरुने

अति साहस करना ठीक नहीं एक कछुआ यह सोचकर बड़ा दुखी था कि पक्षीगण बड़ी आसानीसे आकाशमें उड़ा करते हैं,

किसी गाँव में एक गरीब विधवा ब्राह्मणी रहती थी। तरुणी थी। सुन्दर रूप था । घरमें और कोई न था

श्रीरामकृष्ण परमहंसके गलेमें नासूर हो गया था। उस समय श्रीशशधर तर्कचूड़ामणि परमहंसदेवके पास आये थे। उन्होंने कहा – ” आप

अच्छे इंसानका निर्माता एक छः वर्षका लड़का अपनी चार वर्षकी छोटी बहनके साथ बाजारसे जा रहा था। अचानक उसे लगा

एक गँवार गड़रिया पर्वतकी चोटींपर बैठा प्रार्थना कर रहा था – ओ खुदा! यदि तू इधर पधारे, यदि तू मेरे