
पेट-दर्दकी विचित्र औषध
प्रायः भगवान् श्रीकृष्णकी पटरानियाँ व्रजगोपिकाओंके नामसे नाक-भौं सिकोड़ने लगतीं। इनके अहंकारको भङ्ग करनेके लिये प्रभुने एक बार एक लीला रची।नित्य

प्रायः भगवान् श्रीकृष्णकी पटरानियाँ व्रजगोपिकाओंके नामसे नाक-भौं सिकोड़ने लगतीं। इनके अहंकारको भङ्ग करनेके लिये प्रभुने एक बार एक लीला रची।नित्य

यूनानके बादशाह रोगी हो गये थे। हकीमोंकी चिकित्सा कोई लाभ नहीं कर रही थी। अन्तमें हकीमोंने मिलकर सलाह की। उन्होंने

कठिन समयमें भी तिलक महाराजका विनोदी स्वभाव बना ही रहता। समयकी कठिनता उनपर कुछ भी असर नहीं करती थी। उनका

[3] अस्पृश्य बुद्ध शिष्यसहित सभामें विराजमान थे, उसी समय बाहर खड़ा कोई व्यक्ति बोरसे बोला “क मुझे सभामें बैठने की

कर्मोंका प्रतिफल एक समय नारदजी विष्णुलोक की यात्रापर जा रहे थे, मार्गमें नारदजीको दो सरोवर मिले, जिनका जल अत्यन्त स्वच्छ,

बोध-पीयूष-बिन्दु क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे॥ (हनुमन्नाटक 7/7) महापुरुषोंके कार्योंकी सफलता साधनोंमें नहीं, अपितु उनके आत्मबलमें निवास करती है। मनसि

मङ्कि नामके एक ब्राह्मण थे। उन्होंने धनोपार्जनके लिये बहुत यल किया; पर सफलता न मिली। अन्तमें थोड़े-से बचे-खुचे धनसे उन्होंने

बाबा खड्गसेनजी बड़े ही प्रेमी भक्त थे। इनके जीवनधन व्रजेन्द्र-नन्दन श्रीकृष्णचन्द्र थे। ये उन्हींके स्मरण- चिन्तन एवं स्तवनमें व्यस्त रहते

लोकजीवनकी बोधकथाएँ ‘न्याय होय तो असो’ परिवारमें सामान्य चर्चा चल रही थी। तब एक बात न्याय सम्बन्धी निकली कि न्याय

अपनी पत्नी यशोधराको पुत्र राहुलको, हमूर्ति पिता महाराज शुद्धोदनको तथा वैभवसम्पन्न राज्यको ठुकराकर युवावस्थामें ही गौतम परसे निकले थे। केवल