संसार और इसके सुख-दुःख अनित्य एवं मिथ्या हैं

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संसार और इसके सुख-दुःख अनित्य एवं मिथ्या हैं

उशीनर देशमें एक बड़ा यशस्वी राजा था। उसका नाम था सुयज्ञ लड़ाईमें शत्रुओंने उसे मार डाला। उस समय उसके भाई-बन्धु उसे घेरकर बैठ गये। उसका जड़ाऊ कवच छिन्न-भिन्न हो गया था। गहने और मालाएँ तहस-नहस हो गयी थीं। बाणोंकी मारसे कलेजा फट गया था। शरीर खूनसे लथपथ था। बाल बिखर गये थे। आँखें धँस गयी थीं। क्रोधके मारे दाँतोंसे उसके ओठ दबे हुए थे। मुख धूलसे ढक गया था। शस्त्र और हाथ कट गये थे। वह उस लड़ाईके मैदान में कटे हुए पेड़की तरह पड़ा हुआ था।

रानियोंको दैववश अपनेपतिदेवउ
शीनरनरेशकी यह दशा देखकर बड़ा दुःख हुआ। वे ‘हा नाथ ! हम अभागिनें तो बेमौत मर गयीं।’ ऐसा कहकर बार-बार छाती पीटती हुई अपने स्वामीके चरणोंके पास गिर पड़ीं। वे विलाप कर रही थीं और उनका करुण क्रन्दन सुननेवालोंका भी हृदय फटा जाता था। वे अपने पतिकी लाश पकड़कर विलाप करती रहीं। सूर्यास्त हो गया, परंतु उन्होंने मुर्देको जलाने नहीं दिया। उस समय उशीनरराजाके सम्बन्धियोंने जो विलाप किया था, उसे सुनकर वहाँ स्वयं यमराज बालकके वेषमें आये और उन्होंने उन लोगोंसे कहा- ‘बड़े आश्चर्यकी बात
है !
तुमलोग तो मुझसे सयाने हो बराबर लोगोंका मरना जीना देखते हो, फिर भी इतने मूढ़ हो रहे हो! अरे भाई, यह मनुष्य जहाँसे आया था, वहीं चला गया। तुम्हें भी एक न एक दिन वहीं जाना है। फिर झूठमूठ इतना शोक करनेकी क्या आवश्यकता है? हम तो तुमसे लाखगुने अच्छे हैं, परम धन्य हैं; क्योंकि हमारे माँ बापने हमें छोड़ दिया है, हमारे शरीरमें पर्याप्त बल भी नहीं है; फिर भी हमें कोई चिन्ता नहीं है। भेड़िये आदि हिंसक जन्तु हमारा बाल भी बाँका नहीं कर पाते। करें कैसे? जिसने गर्भमें रक्षा की थी, वही इस जीवनमें भी हमारी रक्षा करता रहता है। जो प्रभु अपनी मौजसे इसको बनाता है, रखता है और बिगाड़ देता है-उस अविनाशी प्रभुका यह जगत् एक खिलौनामात्र है।
रानियो ! सभी प्राणियोंकी मृत्यु अपने पूर्वजन्मोंकी कर्मवासना के अनुसार समयपर होती है और उसीके अनुसार उनका जन्म भी होता है, परंतु आत्मा शरीरसे अत्यन्त भिन्न है, इसलिये वह उसमें रहनेपर भी उसके जन्म-मृत्यु आदि धर्मोसे अछूता ही रहता है। जैसे मनुष्य अपने मकानको अपनेसे अलग और मिट्टीका समझता है, वैसे ही यह शरीर भी अलग और मिट्टीका है।
जिसके लिये तुम सब शोक कर रहे हो, वह सुयज्ञ नामका शरीर तो तुम्हारे सामने ही पड़ा है। तुमलोग इसीको तो देखते थे।
मूर्ख रानियो। तुम्हारी भी यही दशा होनेवाली है। तुम्हें अपनी मृत्यु तो दीखती नहीं और इसके लिये रो पीट रही हो। यदि तुम लोग सौ बरसतक इसी तरह कलेजा पीटती रहो, तो भी यह अब तुमलोगोंको नहीं मिल सकता।’
उस छोटे से बालककी ऐसी ज्ञानपूर्ण बातें सुनकर सब-के-सब दंग रह गये। उशीनरनरेशके भाई-बन्धु और स्त्रियोंने यह बात समझ ली कि समस्त संसार और इसके सुख-दुःख अनित्य एवं मिथ्या हैं। यमराज तो इतना कहकर वहीं अन्तर्धान हो गये। तदुपरान्त विवेकको प्राप्त हुए भाई-बन्धुओंने सुयज्ञकी अन्त्येष्टि-क्रिया की। [ श्रीमद्भागवत ]

संसार और इसके सुख-दुःख अनित्य एवं मिथ्या हैं
उशीनर देशमें एक बड़ा यशस्वी राजा था। उसका नाम था सुयज्ञ लड़ाईमें शत्रुओंने उसे मार डाला। उस समय उसके भाई-बन्धु उसे घेरकर बैठ गये। उसका जड़ाऊ कवच छिन्न-भिन्न हो गया था। गहने और मालाएँ तहस-नहस हो गयी थीं। बाणोंकी मारसे कलेजा फट गया था। शरीर खूनसे लथपथ था। बाल बिखर गये थे। आँखें धँस गयी थीं। क्रोधके मारे दाँतोंसे उसके ओठ दबे हुए थे। मुख धूलसे ढक गया था। शस्त्र और हाथ कट गये थे। वह उस लड़ाईके मैदान में कटे हुए पेड़की तरह पड़ा हुआ था।
रानियोंको दैववश अपनेपतिदेवउ
शीनरनरेशकी यह दशा देखकर बड़ा दुःख हुआ। वे ‘हा नाथ ! हम अभागिनें तो बेमौत मर गयीं।’ ऐसा कहकर बार-बार छाती पीटती हुई अपने स्वामीके चरणोंके पास गिर पड़ीं। वे विलाप कर रही थीं और उनका करुण क्रन्दन सुननेवालोंका भी हृदय फटा जाता था। वे अपने पतिकी लाश पकड़कर विलाप करती रहीं। सूर्यास्त हो गया, परंतु उन्होंने मुर्देको जलाने नहीं दिया। उस समय उशीनरराजाके सम्बन्धियोंने जो विलाप किया था, उसे सुनकर वहाँ स्वयं यमराज बालकके वेषमें आये और उन्होंने उन लोगोंसे कहा- ‘बड़े आश्चर्यकी बात
है !
तुमलोग तो मुझसे सयाने हो बराबर लोगोंका मरना जीना देखते हो, फिर भी इतने मूढ़ हो रहे हो! अरे भाई, यह मनुष्य जहाँसे आया था, वहीं चला गया। तुम्हें भी एक न एक दिन वहीं जाना है। फिर झूठमूठ इतना शोक करनेकी क्या आवश्यकता है? हम तो तुमसे लाखगुने अच्छे हैं, परम धन्य हैं; क्योंकि हमारे माँ बापने हमें छोड़ दिया है, हमारे शरीरमें पर्याप्त बल भी नहीं है; फिर भी हमें कोई चिन्ता नहीं है। भेड़िये आदि हिंसक जन्तु हमारा बाल भी बाँका नहीं कर पाते। करें कैसे? जिसने गर्भमें रक्षा की थी, वही इस जीवनमें भी हमारी रक्षा करता रहता है। जो प्रभु अपनी मौजसे इसको बनाता है, रखता है और बिगाड़ देता है-उस अविनाशी प्रभुका यह जगत् एक खिलौनामात्र है।
रानियो ! सभी प्राणियोंकी मृत्यु अपने पूर्वजन्मोंकी कर्मवासना के अनुसार समयपर होती है और उसीके अनुसार उनका जन्म भी होता है, परंतु आत्मा शरीरसे अत्यन्त भिन्न है, इसलिये वह उसमें रहनेपर भी उसके जन्म-मृत्यु आदि धर्मोसे अछूता ही रहता है। जैसे मनुष्य अपने मकानको अपनेसे अलग और मिट्टीका समझता है, वैसे ही यह शरीर भी अलग और मिट्टीका है।
जिसके लिये तुम सब शोक कर रहे हो, वह सुयज्ञ नामका शरीर तो तुम्हारे सामने ही पड़ा है। तुमलोग इसीको तो देखते थे।
मूर्ख रानियो। तुम्हारी भी यही दशा होनेवाली है। तुम्हें अपनी मृत्यु तो दीखती नहीं और इसके लिये रो पीट रही हो। यदि तुम लोग सौ बरसतक इसी तरह कलेजा पीटती रहो, तो भी यह अब तुमलोगोंको नहीं मिल सकता।’
उस छोटे से बालककी ऐसी ज्ञानपूर्ण बातें सुनकर सब-के-सब दंग रह गये। उशीनरनरेशके भाई-बन्धु और स्त्रियोंने यह बात समझ ली कि समस्त संसार और इसके सुख-दुःख अनित्य एवं मिथ्या हैं। यमराज तो इतना कहकर वहीं अन्तर्धान हो गये। तदुपरान्त विवेकको प्राप्त हुए भाई-बन्धुओंने सुयज्ञकी अन्त्येष्टि-क्रिया की। [ श्रीमद्भागवत ]

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