
सु-भद्रा
जो पहले था, अब भी है और सदा रहेगा, वही ‘सत्’ है; जिसके सुननेसे हित होता है, ऐसे वृत्तान्तको भी

जो पहले था, अब भी है और सदा रहेगा, वही ‘सत्’ है; जिसके सुननेसे हित होता है, ऐसे वृत्तान्तको भी

‘मन बड़ा चञ्चल होता है!’ श्रीनारायणदासजी बदरिकाश्रमसे मथुरा आये थे। वहाँ प्रभुके दर्शनार्थियोंका ताँता लगा रहता था। दर्शनार्थी अपने-अपने उपानह

महाराज विक्रमादित्य प्रजाके कोंका पता लगानेके लिये प्रायः अकेले घूमा करते थे। एक बार वे घोड़ेपर चढ़कर एक वनमेंसे जा

फ्रांसकी विशाल सेनाने स्पेनके जारगोजा नगरको घेर लिया। नागरिकोंने प्राणरक्षाका कोई उपाय न देखकर किलेमें एकत्र होना उचित समझा। आक्रमणकारियोंने

किसीने महात्मा गांधीजीसे पूछा कि ‘रामचन्द्रने सीताका अग्निमें प्रवेश कराया और उसका त्याग किया। युधिष्ठिरने जुआ खेला और द्रौपदीकी रक्षा

ऋषियोंके प्रति उपहासपूर्ण व्यवहारका फल एक समयकी बात है-महर्षि विश्वामित्र, कण्व और तपोधन नारदजी द्वारकामें गये हुए थे। उन्हें देखकर

कटड़ा बँधा है सारंगपुर अच्छा बड़ा गाँव था। नहरका क्षेत्र होनेके कारण पानीकी कमी न थी। इसलिये फसलें अच्छी होती

रिश्तोंकी कमाई बात आठ-दस साल पहलेकी है। मैं अपने एक मित्रका पासपोर्ट बनवानेके लिये दिल्लीके पासपोर्ट ऑफिस गया था। उन

भगवान्को पानेकी योग्यता श्रीलालाबाबूका असली नाम था श्रीकृष्णचन्द्र सिंह। उनके पिता प्राणकृष्णके पास बड़ी जमींदारी थी 1 और वे पूर्वी

देवराज इन्द्र अपनी देवसभामें श्रेणिक नामके राजाके साधु-स्वभावकी प्रशंसा कर रहे थे। उस प्रशंसाको सुनकर एक देवताके मनमें राजाकी परीक्षा