
बोधप्रदायक यक्ष-युधिष्ठिर संवाद
बोधप्रदायक यक्ष-युधिष्ठिर संवाद द्यूतक्रीड़ामें दुर्योधनके हाथों अपना सर्वस्व गवानेके बाद पाण्डवोंको बारह वर्षका वनवास एवं एक वर्षका अज्ञातवास भोगनेको बाध्य

बोधप्रदायक यक्ष-युधिष्ठिर संवाद द्यूतक्रीड़ामें दुर्योधनके हाथों अपना सर्वस्व गवानेके बाद पाण्डवोंको बारह वर्षका वनवास एवं एक वर्षका अज्ञातवास भोगनेको बाध्य

एक अकिंचन भगवद्भक्तने एक बार व्रत किया। पूरे दस दिनतक वे केवल जल पीकर रहे। उनका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो

करीब डेढ़ सौ वर्ष बीत चुके होंगे। चम्पारनमें केशरिया थानाके अन्तर्गत एक ढेकहा गाँव है। वहीं गण्डक नदीके किनारे श्रीकर्त्ताराम

श्रीचैतन्य महाप्रभु संन्यास लेकर जब श्रीजगन्नाथपुरीमें रहने लगे थे, तब वहाँ महाप्रभुके अनेक भक्त भी बंगालसे आकर रहते थे। महाप्रभुके

फ्रान्सके प्रसिद्ध संत इवोहिलारीका समस्त जीवन दैन्यका प्रतीक था। तेरहवीं शताब्दीके यूरोपके इतिहासमें उनका नाम अमर है। अपने निवासस्थान ब्रिटनी

धन कुबेरके दो पुत्र थे- नलकूबर और मणिग्रीव कुबेरके पुत्र, फिर सम्पत्तिका पूछना क्या। युवावस्था थी, यक्ष होनेके कारण अत्यन्त

एक धनी सेठने सोनेसे तुलादान किया। गरीबोंको खूब सोना बाँटा गया। उसी गाँवमें एक संत रहते थे। सेठने उनको भी

एक भक्तके एक ही पुत्र था और वह बड़ा ही सुन्दर, सुशील, धर्मात्मा तथा उसे अत्यन्त प्रिय था । एक

विनोबासे ‘सन्त विनोबा’ सन् 1912 ई0 की यह बात है। बडोदरा शहरके दो मित्र आपसमें बातें कर रहे थे। एक

एक सदाचारिणी ब्राह्मणी थी, उसका नाम था जबाला उसका एक पुत्र था सत्यकाम। वह जब विद्याध्ययन करने योग्य हुआ, तब