
सत्यको न समझ पानेकी आत्मघाती विडम्बना
सत्यको न समझ पानेकी आत्मघाती विडम्बना किसी गाँव कन्फ्यूशियस शिष्यसहित पधारे। गाँवकेपाँच युवक एक अन्धेको पकड़कर उनके पास लाये। उनमेंसे

सत्यको न समझ पानेकी आत्मघाती विडम्बना किसी गाँव कन्फ्यूशियस शिष्यसहित पधारे। गाँवकेपाँच युवक एक अन्धेको पकड़कर उनके पास लाये। उनमेंसे

गुरु नानकदेवजी यात्रा करते हुए कराची, बिलोचिस्तानके स्थलमार्गसे मक्का पहुँच गये थे। जब रात्रि हुई, तब वे काबाकी परिक्रमामें काबाकी

(2) इच्छाओंकी डोरसे ही बन्धन एक सूफी सन्त बाजारसे निकल रहे थे। साथमें शिष्योंका जमघट भी था। उन्होंने देखा कि

लगभग एक हजार वर्ष पहलेकी बात है। महाराज यशस्करदेव काश्मीरमें शासन करते थे। प्रजाका जीवन धर्म, सत्य और न्यायके अनुरूप

मेहनतसे बदली किस्मत बटोरनके पिता अव्वल दर्जेके आलसी थे। इसलिये उनकी माली हालत खराब थी। बटोरनका असली नाम बटोही था,

पिछली शताब्दीकी बात है। एक फ्रेंच व्यापारी जिसका नाम लबट था, दैवयोगसे बीमार पड़ गया और आडर नदीके तटपर एक

गीतगोविन्दके कर्ता भक्तश्रेष्ठ महाकवि जयदेव तीर्थयात्राको निकले थे। एक नरेशने उनका बहुत सम्मान किया और उन्हें बहुत सा धन दिया

चार्ली, तूने यह क्या किया ? भारतकी सेवामें अपनेको खपा देनेवाले-‘दीनबन्धु’ एण्ड्रजका प्यारका नाम था ‘चार्ली’। गाँधीजी उन्हें इसी नामसे

कुछ वर्ष पूर्वकी घटना है। एक सेठजी गाँजा पीनेकी आदतसे लाचार थे। वे एक बार एक संन्यासीके पास गये और

तेरा क्या भरोसा ? एक गड़रिया अपनी बकरियों और बच्चोंको लेकर एक गाँवसे दूसरे गाँवको जा रहा था। रास्ता पहाड़ी