
बाबा ! शेर बनकर गीदड़ क्यों बनते हो
प्रसिद्ध संत श्रीतपसीबाबाजी महाराज बड़े घोर तपस्वी संत थे। जो भी रूखा सूखा मिल जाता, उसीसे पेट भर लेते और

प्रसिद्ध संत श्रीतपसीबाबाजी महाराज बड़े घोर तपस्वी संत थे। जो भी रूखा सूखा मिल जाता, उसीसे पेट भर लेते और

किसी ग्राममें एक विद्वान् स्त्री-पुरुष तथा उनके दो बच्चे रहते थे। बड़ा लड़का शान्त स्वभावका, पठनशील और विचारप्रिय था। छोटा

बड़ी मीठी लगती है चाटुकारिता और एक बार जब चाटुकारोंकी मिथ्या प्रशंसा सुननेका अभ्यास हो जाता है, तब उनके जालसे

भरोसा सुकरात मरने लगे, तो किसीने पूछा कि आप घबरा तो नहीं रहे हैं? सुकरातने कहा- ‘घबराना काहे का? जैसा

सेवा ही भक्ति है महिला सन्त राबिया पशु-पक्षियों, असहायों और रोगियोंकी सेवामें हमेशा तत्पर रहा करती थीं। यात्रा करती हुई

उलटा नाम जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना ॥ बहुत प्राचीन बात है, सङ्गदोषसे एक ब्राह्मण क्रूर डाकू बन

दो भाई राजपूत जवान ऊँटपर चढ़कर कमाईके लिये परदेश जा रहे थे। उन्हें दूरसे ही एक साधु दौड़ता । सामने

मधुर कवि तिरुक्कोलूर नामक स्थानमें एक सामवेदी ब्राह्मणके यहाँ उत्पन्न हुए थे। ये वेदके अच्छे ज्ञाता थे; किंतु इन्होंने सोचा

द्रोणाचार्य उन दिनों हस्तिनापुरमें कुरुकुलके बालक पाण्डव एवं कौरवोंको अस्त्र-शस्त्रकी शिक्षा दे रहे थे। एक दिन एक काले रंगका पुष्ट

महात्मा इब्राहीमका नियम था कि किसी अतिथिको भोजन कराये बिना भोजन नहीं करते थे। एक दिन उनके यहाँ कोई अतिथि