
अक्रोध
एक सज्जन पुरुषके सम्बन्धमें प्रख्यात था कि उन्हें क्रोध आता ही नहीं है। कुछ लोगोंको किसी संयमीको संयमच्युत करनेमें आनन्द

एक सज्जन पुरुषके सम्बन्धमें प्रख्यात था कि उन्हें क्रोध आता ही नहीं है। कुछ लोगोंको किसी संयमीको संयमच्युत करनेमें आनन्द

आनन्दरामायणकी तीन बोधकथाएँ पहली कथा – भेड़ोंका उपदेश एक समयकी बात है, माता कैकेयी श्रीरामके पास गयीं और उनसे बोलीं-

एथेन्स सोलन नामका एक बड़ा भारी विद्वान् रहता था। उसे देशाटनका बड़ा शौक था। एक बार वह घूमता चामा लोडिया

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपनी असीम उदारताके कारण कंगाल हो चुके थे। एक समय ऐसा आया जब उनके पास इतने पैसे नहीं

एक बड़ा दानी राजा था, उसका नाम था जानश्रुति । उसने इस आशयसे कि लोग सब जगह मेरा ही अन्न

सृष्टिकी सम्पूर्ण पवित्रताकी साकार प्रतिमा निर्दिष्ट करना हो तो कोई भी बिना संकोचके किसी आर्यकुमारीका नाम ले सकता है। मृदुता,

दिव्यांग सहपाठीकी हँसी उड़ानेका फल आजसे लगभग पचास वर्ष पूर्व घटी एक घटनाको मैं भुला नहीं पा रहा हूँ; क्योंकि

‘सीख वाको दीजिये , (डॉ0 चक्षुप्रभाजी, एम0ए0, पी-एच0डी0) फाल्गुनका महीना चल रहा था। ठण्डी ठण्डी हवाके साथ धीमी-धीमी बूँदें भी

तुलसी अद्भुत देवता आसा देवी नाम। सेये सोक समर्पई बिमुख भये अभिराम ॥ एक बार युधिष्ठिरने भीष्मजीसे पूछा कि ‘पितामह!

जापानके सामन्तराज सातोमी बड़ी कठिनाईमें पड़ गये थे। शत्रु-सेनाने उनके दुर्गको तीन महीनेसे घेर रखा था। यह ठीक था कि