
बहुत गयी थोड़ी रही
‘बहुत गयी थोड़ी रही” बात तबकी है, जब प्रथम जैन तीर्थंकर श्रीआदिनाथ पृथ्वीपर राज करते थे। राज करते-करते दीर्घकाल व्यतीत

‘बहुत गयी थोड़ी रही” बात तबकी है, जब प्रथम जैन तीर्थंकर श्रीआदिनाथ पृथ्वीपर राज करते थे। राज करते-करते दीर्घकाल व्यतीत

पुरुषार्थ करनेसे संकटसे मुक्ति मिलती है वाराणसीमें भगवान् त्रिलोचनके मणिमाणिक्यनिर्मित मन्दिरमें कबूतरोंका एक जोड़ा निवास करता था। वे दोनों कबूतर

बड़ी मीठी लगती है चाटुकारिता और एक बार जब चाटुकारोंकी मिथ्या प्रशंसा सुननेका अभ्यास हो जाता है, तब उनके जालसे

परमहंस रामकृष्णदेव गङ्गा-किनारे बैठ जाते थे एक ओर रुपये-पैसोंका ढेर लगाकर और एक ओर कंकड़ोंकी ढेरी रखकर एक मुट्ठीमें पैसे

‘साधन और अनुष्ठान तोथोंमें ही शीघ्र सफल होते हैं और उनका अक्षय फल होता है। इसी विचारसे साधु बाहिय सुप्पारक

[10] हितैषी मित्रका त्याग न करें एक स्थानपर कुछ भेड़ें चरा करती थीं। कुछ बलवान् कुत्ते वहाँ उनकी रखवाली किया

रोमका एक चित्रकार ऐसे व्यक्तिका चित्र बनाना चाहता था जिसके मुखसे भोलेपन, सरलता और दीनताके भाव स्पष्ट प्रकट होते हों।

स्वामी रामतीर्थ जापानसे अमेरिका जा रहे थे। प्रशान्त महासागरका वक्ष विदीर्ण करता हुआ उनका जहाज सान फ्रांसिसकोके एक बंदरगाहपर आ

कलौंजके आचारच्युत एवं जातिच्युत ब्राह्मण अजामिलने कुलटा दासीको पत्नी बना लिया था। न्याय अन्यायसे जैसे भी धन मिले, वैसे प्राप्त

सन् 1916 की 23 जुलाईको लोकमान्य तिलककी 60 वीं वर्षगाँठ थी। दो वर्ष पूर्व ही वे माँडलेमें छ: वर्षकी सजा