
आत्मज्ञानसे ही शान्ति
द्वापरान्तमें उज्जैनमें शिखिध्वज नामके नरेश थे। उनकी पत्नी चूडाला सौराष्ट्र नरेशकी कन्या थीं। रानी चूडाला बड़ी विदुषी थीं। युवावस्था दिनोंदिन

द्वापरान्तमें उज्जैनमें शिखिध्वज नामके नरेश थे। उनकी पत्नी चूडाला सौराष्ट्र नरेशकी कन्या थीं। रानी चूडाला बड़ी विदुषी थीं। युवावस्था दिनोंदिन

भक्तजीको दैत्यराज हिरण्यकशिपु भगवान्के स्मरण-भजनसे विरत करना चाहता था। उसकी धारणा थी कि ‘प्रह्लाद अभी बालक है, उसे किसीने बहका

कर भला तो हो भला सभी मनुष्योंको अपने कर्मोंका फल अवश्य भोगना पड़ता है। अच्छे कर्म करनेका परिणाम सदा शुभ

एक राजाके यहाँ एक संत आये। प्रसङ्गवश बात चल पड़ी हककी रोटीकी। राजाने पूछा- ‘महाराज ! हककी रोटी कैसी होती

एक पुलिसके सीनियर सुपरिंटेंडेंट अंग्रेज सज्जन थे। एक बार उनपर कोई संकट आया। एक ब्राह्मण चपरासीने उनसे कहा-‘सरकार! गणेशजी सिद्धिदाता

प्रेमकी कीमत ‘दो सौ बावन वैष्णवोंकी वार्ता’ में भक्तशिरोमणि श्रीजमनादासजीके जीवनका एक मनोरम प्रसंग आता है। जमनादासजी एकबार ठाकुरजीके लिये

एक जिज्ञासुने किसी संतसे पूछा- ‘महाराज ! राम नाममें कैसे प्रेम हो तथा कैसे भजन बने ?’ संत बोले- भाई!

एक बार देवासुर संग्राम हुआ। उसमें भगवान्की कृपासे देवताओंको विजय मिली। परमेश्वर तथा शास्त्रकी मर्यादा भङ्ग करनेवाले असुर हार गये।

माधुर्यका रहस्य- केवल संग्रह मत करो पथिकने सरितासे पूछा, ‘सरिते! तू इतनी छोटी है, किंतु तेरा जल कितना मधुर तथा

एक महात्मा रातों जगकर प्रभुका स्मरण किया करते थे। एक बार उनके एक मित्रने उनसे पूछा-‘आप यदि बीच-बीचमें सो लिया