
अभिभावकोंको चाहिये कि संतानको सुसंस्कार दें
अभिभावकोंको चाहिये कि संतानको सुसंस्कार दें पूर्वकालमें मृत्युदेवके एक कन्या उत्पन्न हुई थी, जिसका नाम सुनीथा रखा गया था। वह

अभिभावकोंको चाहिये कि संतानको सुसंस्कार दें पूर्वकालमें मृत्युदेवके एक कन्या उत्पन्न हुई थी, जिसका नाम सुनीथा रखा गया था। वह

सीख एक गुरुकी उत्तर भारतके पहाड़ी इलाकेमें एक गुरुका आश्रम था। उनके पास सुदूर क्षेत्रोंसे शिष्य शिक्षा ग्रहण करने आते

ऐसा प्रायः देखा जाता है और संतोंके जीवन वृत्तान्तसे पता चलता है कि बड़े-बड़े संत विज्ञापन, प्रचार और प्रसिद्धिसे दूर

श्रीधाम पुरीके ‘बड़े बाबाजी’ सिद्ध श्रीरामरमण दासजीके विद्यार्थी जीवनका नाम राइचरण था। उस समय इनकी अवस्था दस-बारह वर्षकी थी। इस

ईश्वर सब देखता है इंग्लैण्डके एक महानगरमें शेक्सपियरका कोई नाटक चल रहा था। बहुत वर्षों पहले सज्जनोंके लिये नाटक देखना

एक श्रेष्ठ नारी थी। माता-पिता भगवद्भक्त थे, उन्होंने पुत्रीको उत्तम शिक्षा दी थी। विवाह हो जानेपर पतिगृह आकर उसने सोचा-

मित्रकी माता धर्मतः माता होती है एक बार अयोध्यानरेश श्रीराम, लक्ष्मण और सुग्रीवके साथ लंकापुरी आये। राजा विभीषणका मन्त्रिमण्डल और

प्रसादो जगदीशस्य अन्नपानादिकं च यत् । ब्रह्मवन्निर्विकारं हि यथा विष्णुस्तथैव तत् ॥ नरेशका हृदय जला जा रहा था। वे मन-ही

उन्नीसवीं शताब्दीके दूसरे चरणके कुछ साल बाद हो अंग्रेजी और तुर्की सेना तथा रूसी सेनामें कालेसागर के तटपर युद्ध आरम्भ

गढ़मण्डलके राजा पीपाजी राज-काज छोड़ रामानन्द स्वामीके शिष्य बने और उनकी आज्ञासे द्वारकामें हरि दर्शनार्थ गये। दर्शन करके अपनी पत्नीसहित