
बोधकथापरक नीति-साहित्य
बोधकथापरक नीति-साहित्य (डॉ0 श्रीसूर्यमणिजी शास्त्री, एम0 ए0, साहित्याचार्य, पी-एच0 डी0 ) मानव जीवनमें नीतिशास्त्रका महत्त्वपूर्ण स्थान है। मानवको मानवता जन्मसे

बोधकथापरक नीति-साहित्य (डॉ0 श्रीसूर्यमणिजी शास्त्री, एम0 ए0, साहित्याचार्य, पी-एच0 डी0 ) मानव जीवनमें नीतिशास्त्रका महत्त्वपूर्ण स्थान है। मानवको मानवता जन्मसे

बेलगाँव जिले (दक्षिण कर्नाटक) के मुरगोड़ स्थानके चिदम्बर दीक्षित सनातन वैदिक धर्मके बहुत बड़े उद्धारक, भक्ति-ज्ञानके प्रसारक और प्रेम, सेवा

परमेश्वर हमारे अन्दर है वृन्दावनमें एक वृद्ध महिला रहती थीं। उनका नाम था माया। वे एक छोटी-सी कुटियामें अकेले रहती

एक बौद्ध ब्रह्मचारी था। अवस्था बीस वर्षकी होगी । चतुर तो था ही, ज्ञानार्जनमें भी कुशल और तत्पर था। वह

भगवान्की भक्तिमें तल्लीन नामदेवका घरसे बिलकुल ही ध्यान जाता रहा। उनकी पत्नी राजाईको पुत्र भी हो चुका था। घर दाने-दानेके

नींवके पत्थर बात सन् 1928-29 ई0की है। लालबहादुर शास्त्री लोक-सेवक मण्डलकी जिम्मेदारियाँ लेकर इलाहाबाद पहुँचे। छोटा कद, दुबली-पतली काठी, सिरपर

पहले समयकी बात है। किसी देशके एक छोटे से गाँव में एक व्यक्ति रहता था। उसके पास एक गधा था।

जो तू चाहे सुख सदा एक बार हकीम लुकमानसे उनके बेटेने पूछा ‘अगर मालिकने फरमाया कि कोई चीज माँग, तो

आध्यात्मिक बोधकथाएँ (कथा-अड्डू कथा-अ एक तत्त्वबोधक प्रेरक कथा प्रतिष्ठानपुर नामक एक अत्यन्त विख्यात नगर था। वहाँपर पृथ्वीरूप नामक एक अत्यन्त

(लेखक श्रीब्रह्मानन्दजी ‘बन्धु’) गत महासमरमें वर्मापर जापानका अधिकार हो । चुका था और ब्रिटिश सेना फिरसे उसपर आधिपत्य जमा रही