नींवके पत्थर
नींवके पत्थर बात सन् 1928-29 ई0की है। लालबहादुर शास्त्री लोक-सेवक मण्डलकी जिम्मेदारियाँ लेकर इलाहाबाद पहुँचे। छोटा कद, दुबली-पतली काठी, सिरपर
नींवके पत्थर बात सन् 1928-29 ई0की है। लालबहादुर शास्त्री लोक-सेवक मण्डलकी जिम्मेदारियाँ लेकर इलाहाबाद पहुँचे। छोटा कद, दुबली-पतली काठी, सिरपर
पहले समयकी बात है। किसी देशके एक छोटे से गाँव में एक व्यक्ति रहता था। उसके पास एक गधा था।
जो तू चाहे सुख सदा एक बार हकीम लुकमानसे उनके बेटेने पूछा ‘अगर मालिकने फरमाया कि कोई चीज माँग, तो
आध्यात्मिक बोधकथाएँ (कथा-अड्डू कथा-अ एक तत्त्वबोधक प्रेरक कथा प्रतिष्ठानपुर नामक एक अत्यन्त विख्यात नगर था। वहाँपर पृथ्वीरूप नामक एक अत्यन्त
(लेखक श्रीब्रह्मानन्दजी ‘बन्धु’) गत महासमरमें वर्मापर जापानका अधिकार हो । चुका था और ब्रिटिश सेना फिरसे उसपर आधिपत्य जमा रही
इडिथ कवल एक अंग्रेज परिचारिका थी। वह प्रथम महायुद्धके समय घायलोंकी सेवा-शुश्रूषा करनेके लिये बेलजियम गयी हुई थी। वह शत्रु-मित्र
एक भिक्षुक अचानक राजा हो गया था। उस देशके संतानहीन नरेशने घोषणा की थी कि उनकी मृत्युके पश्चात् जो पहिला
रस्सीमें सर्पका भ्रम (स्वामी श्रीअमरानन्दजी घड़ीने अभी-अभी नौका घण्टा बजाया था। हिरेन ‘सुन्दरवनके बाघ’ फिल्म देखनेके बाद वापस अपने घर
आखिरमें मिला क्या ? विश्व भ्रमणपर निकला एक धनी व्यापारी नीदरलैण्डके एम्सटर्डम शहरमें पहुँचा। वहाँ उसने एक अत्यन्त भव्य और
सार्थक जीवन हरी घासके बीच एक सूखी घासका तिनका पड़ा था। उसे देखकर हरी घास तिनकेके निष्क्रिय, अर्थहीन जीवनपर खिलखिलाकर