
भगवान् नारायणका भजन ही सार है
महान संत श्रीविष्णुचित पेरियार बाल्यकालमे हो भगवद्भक्तिके चिह्न दीखने लगे थे यज्ञोपवीत संस्कार होनेके बाद ही बालकने बिना जाने-पहचाने अपना

महान संत श्रीविष्णुचित पेरियार बाल्यकालमे हो भगवद्भक्तिके चिह्न दीखने लगे थे यज्ञोपवीत संस्कार होनेके बाद ही बालकने बिना जाने-पहचाने अपना

मातु पिता गुर प्रभु कै बानी ” बहुत वर्ष हुए, प्रयागके माघ मेलेमें देवरहा बाबासे एक छोटी-सी कथा सुनी थी।

बाणेश्वर महादेवके समक्ष विद्यापति मधुर कण्ठसे कीर्तन करते रहते और आँखोंसे झर-झर अश्रु झरता रहता कखन हरब दुख मोर। हे

लोकमान्य तिलक कितने स्थितप्रज्ञ थे, यह उनके जीवनकी अनेक घटनाओंसे प्रकट है। एक बार वे अपने कार्यालयमें किसी महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर

बीमारीमें भी भगवत्कृपा बंगालके प्रसिद्ध नेता और धर्मप्राण श्रीअश्विनी कुमारदत्तके गुरुका नाम राजनारायण बसु था। ये बड़े भगवद्विश्वासी भक्त थे।

जैनपुराणकी कथा है कि एक बार श्रीबलदेव, वासुदेव और सात्यकि—ये तीनों बिना किसी सेवक या सैनिकके वनमें भटक गये। बात

जाने क्यों, सम्राट्की नींद एकाएक उड़ गयी। पलंगपर पड़े रहनेके बदले बादशाह उठकर बाहर निकल आया। निस्तब्ध रात्रि थी। पहरेदारने

रात्रिका समय है। दक्षिणभारतके एक छोटे-से गाँवकी एक छोटी-सी कोठरीमें रेंड़ीके तेलका दीपक जल रहा है। कोठरीका कच्चा आँगन और

नेपोलियन बोनापार्ट बचपन बहुत निर्धन थे किंतु अपने साहस और उद्योगसे वे फ्रांसके सम्राट् हुए। सम्राट् होनेके “पश्चात् वे एक

बाबा श्रीभास्करानन्दजी अपनी गङ्गातटकी कुटिया में बैठे भगवन्नामका जप कर रहे थे। सहसा आहट पाकर उनकी दृष्टि सामने की ओर