लालच बुरी बलाय
‘लालच बुरी बलाय’ एक दुखी लकड़हारा नदीके किनारे पेड़ काट रहा था। सहसा उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथसे फिसलकर नदीमें जा
‘लालच बुरी बलाय’ एक दुखी लकड़हारा नदीके किनारे पेड़ काट रहा था। सहसा उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथसे फिसलकर नदीमें जा
(उमा-महेश्वर) सदा शिवानां परिभूषणायै सदा शिवानां परिभूषणाय । शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ यह भी एक
श्रीभूदेव मुखोपाध्यायने अपनी एक लाख, साठ हजारकी सम्पत्ति दान करके अपने पिता श्रीविश्वनाथ तर्कभूषणकी स्मृतिमें ‘विश्वनाथ फंड’ स्थापित किया था।
एक बार महर्षि आपस्तम्बने जलमें ही डूबे रहकर भगवद्भजन करनेका विचार किया। वे बारह वर्षोंतक नर्मदा और मत्स्या संगमके जलमें
पंजाब केसरी महाराज रणजीतसिंह कहीं जा रहे थे। अकस्मात् एक ढेला आकर उनको लगा। महाराजको बड़ी तकलीफ हुई। साथी दौड़े
(4) पिता-पुत्र किसी नगरमें एक व्यापारी रहता था, जो परिस्थितिवश निर्धन हो गया था। उसका एक छोटा-सा लड़का भी था।
समूहमें शक्ति होती है किसी वनमें एक तमालके वृक्षपर घोंसला बनाकर घटक पक्षी (गौरैया) का एक जोड़ा रहता था। कालान्तरमे
एक साधु प्रातः काल शौचादिसे निवृत्त होकर नदी किनारे एक धोबीके कपड़े धोनेके पत्थरपर खड़े-खड़े ध्यान करने लगे। इतनेमें धोबी
बड़े लोगोंकी बड़ी बातें एक बार बातें करते-करते शम्भुरावने कहा, ‘बहू। तुमने शिक्षा ग्रहण नहीं की. फिर भी तुम बड़ी
एक गृहस्थ त्यागी, महात्मा थे। एक बार एक सज्जन दो हजार सोनेकी मोहरें लेकर उनके पास आये और कहने लगे-