अभी बहुत दिन हैं
एक श्रेष्ठ नारी थी। माता-पिता भगवद्भक्त थे, उन्होंने पुत्रीको उत्तम शिक्षा दी थी। विवाह हो जानेपर पतिगृह आकर उसने सोचा-
एक श्रेष्ठ नारी थी। माता-पिता भगवद्भक्त थे, उन्होंने पुत्रीको उत्तम शिक्षा दी थी। विवाह हो जानेपर पतिगृह आकर उसने सोचा-
[3] नैतिक सामाजिकता एक फटे हाल महिला घायल अवस्थामें सड़कके किनारे पड़ी हुई कराह रही थी। पासमें उसका अबोध शिशु
रहीम खानखाना अपने समयके उदार और दानीदे व्यक्तियोंमेंसे एक थे। वे बहुत बड़े गुणग्राहक और भगवद्भक्त थे। उन्होंने अपने जीवनकालमें
अहन्ताके त्यागसे ही जीवन्मुक्ति एक राजा था, वह अत्यन्त विचारशील था। एक बार वह विचार करते-करते व्याकुल हो उठा, उसे
भगवान् श्रीशंकराचार्यजीका लोकव्यवहार-बोध भगवान् श्रीशंकराचार्यजीने जहाँ एक और मुमुक्षुओंके कल्याणार्थ विवेकचूडामणि, अपरोक्षानुभूति, शतश्लोकी- जैसे प्रकरण-ग्रन्थोंका प्रणयन किया, वहीं दूसरी ओर
द्रौपदीके साथ पाण्डव वनवासके अन्तिम वर्ष अज्ञातवासके समयमें वेश तथा नाम बदलकर राजा विराटके यहाँ रहते थे। उस समय द्रौपदीने
थेरीगाथाकी बौद्ध भिक्षुणियाँ – कतिपय प्रसंग बौद्ध धार्मिक साहित्य, जो पाली भाषामें है, उसमें ‘तिपिटक’ (संस्कृत-त्रिपिटक)- का विशेष स्थान है।
पट्टन-साम्राज्यके महामन्त्री उदयनके पुत्र बाहड़ जैनोंके शत्रुञ्जयतीर्थका पुनरुद्धार करके दिवंगत पिताकी अपूर्ण इच्छा पूरी कर देना चाहते थे। तीर्थोद्धारका कार्य
कुसंगका परिणाम गंगाजी के किनारे गृध्रकूट नामक पर्वतपर एक विशाल पाकड़ वृक्ष था। उसके खोखले भाग (कोटर) में एक अन्धा
महाभारत युद्धके 10 वें दिन भीष्मपितामहके ही बतलाये मार्गसे शिखण्डीकी आड़ लेकर अर्जुनने उन्हें घायल कर दिया और अन्ततोगत्वा उन्हें