
पाँच स्कन्धोंका संघात
एक बार एक ग्रीक राजा एक बौद्ध भिक्षुके पास गया। उसने उस भिक्षुसे, जिसका नाम नागसेन था, पूछा- ‘महाराज !

एक बार एक ग्रीक राजा एक बौद्ध भिक्षुके पास गया। उसने उस भिक्षुसे, जिसका नाम नागसेन था, पूछा- ‘महाराज !

राजा बृहदश्व सौ अश्वमेध यज्ञ करना चाहते थे। लगभग बानवे यज्ञ वे कर चुके थे। उनके गुरु उस समय समाधिस्थ

किसा गौतमीका प्यारा इकलौता पुत्र मर गया। उसको बहुत बड़ा शोक हुआ। वह पगली-सी हो गयी और पुत्रकी लाशको छातीसे

पंढरपुरमें दामाजी सेठ नामक एक दर्जी (छींपी) भगवान् विट्ठलनाथके बड़े ही भक्त थे। उनके सुपुत्र नामाजीको भी बचपनसे वही लत

वरुणा नदीके तटपर अरुणास्पद नामके नगरमें एक ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा सदाचारी तथा अतिथिवत्सल था। रमणीय वनों एवं उद्यानोंको

वायिन्सको पोलैंडका बहुत बड़ा देशभक्त था अपने आत्मचिन्तन और दार्शनिक विचारोंके लिये भी वह बहुत प्रसिद्ध था। लोग उसका बड़ा

गौतम बुद्धके समयमें एक पुरुषने एक बहुमूल्य चन्दनका एक रत्नजटित शराव (बड़ा प्याला) ऊँचे खंभेपर टाँग दिया और उसके नीचे

एक वनमें वटवृक्षकी जड़में सौ दरवाजोंका बिल बनाकर पलित नामका एक बुद्धिमान् चूहा रहता था । उसी वृक्षकी शाखापर लोमश

पैसा आपका है, लेकिन संसाधन समाजके हैं! जर्मनी एक उन्नत औद्योगिक देश है। बहुत-से लोग सोचेंगे कि वहाँके लोग बड़े

प्राचीन कालमें सिंहलद्वीपके अनुराधपुर नगरसे बाहर एक टीला था, उसे चैत्यपर्वत कहा जाता था। उसपर महातिष्य नामके एक बौद्ध भिक्षु