
वेदसार शिवस्तवः स्तोत्र:
वेदसार शिवस्तव भगवान शिव की स्तुति है। जिसे भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु आदिगुरु शंकराचार्य ने लिखा है। इस स्तुति
वेदसार शिवस्तव भगवान शिव की स्तुति है। जिसे भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु आदिगुरु शंकराचार्य ने लिखा है। इस स्तुति
जीवन में सफलता की कुंजी है ‘सिद्ध कुंजिका’- दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र
इस मंत्र का जप पुष्य नक्षत्र एवं शुक्रवार में अवश्य करें। यह भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण
जय सच्चिदानंद। प्रात: स्मरामि हृदि संस्फुरदात्मतत्त्वंसच्चित्सुखं परमहंसगतिं तुरीयम्।यत्स्वप्नजागरसुषुप्तिमवैति नित्यंतद्ब्रह्म निष्कलमहं न च भूतसंघ:।।१।। भावार्थ-मैं प्रात:काल, हृदय में स्फुरित होते हुए
जय गणेशकीलक स्तोत्रम्- वेदों-पुराणों का मंत्र-तंत्र-स्तुत्ति-स्तोत्र आदि सभी कीलित है, अतः ये सभी निष्प्रभावी होते हैं। उन्हें अपने साधना करने
जो सूर्य के उदय और अस्तकाल में दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र के द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति करता
यह मंत्र आत्मा की ऊर्जा को शुद्ध करने और माँ दुर्गा के प्रति विश्वास और समर्पण को बढ़ावा देने का
सरस्वत्यां प्रसादेन, काव्यं कुर्वन्ति मानवाः।तस्मान्निश्चल-भावेन, पूजनीया सरस्वती।।१।। श्री सर्वज्ञ मुखोत्पन्ना, भारती बहुभाषिणी।अज्ञानतिमिरं हन्ति, विद्या-बहुविकासिनी।।२।। सरस्वती मया दृष्टा, दिव्या कमललोचना।हंसस्कन्ध-समारूढ़ा, वीणा-पुस्तक-धारिणी।।३।।
” श्रीगणेशायनम: ! अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे
श्रीराम गोविन्द मुकुन्द कृष्णश्री नाथ विष्णो भगवन्नमस्ते।प्रौढारिषड् वर्ग महाभयेभ्योमां त्राहि नारायण विश्वमूर्ते।। भगवान विष्णु ने जब रघुवंशी महाराज दशरथ के