ध्यान प्रयोग बैठो, ध्यान नाभि का रखो। उठो, ध्यान नाभि का रखो।
कुछ भी करो, लेकिन तुम्हारी चेतना नाभि के आस-पास घूमती रहे। एक मछली बन जाओ और नाभि के आस-पास घूमते रहो। और शीघ्र ही तुम पाओगे कि तुम्हारे भीतर एक नई शक्तिशाली चेतना का जन्म हो गया।
इसके अदभुत परिणाम हैं। इसके बहुत प्रयोग हैं। आप यहां एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं। आपके कुर्सी पर बैठने का ढंग गलत है। इसीलिए आप थक जाते हैं। कुर्सी पर मत बैठो। इसका यह मतलब नहीं कि कुर्सी पर मत बैठो, नीचे बैठ जाओ। कुर्सी पर बैठो, लेकिन कुर्सी पर वजन मत डालो। वजन अपनी नाभि पर डालो।
अभी आप यहीं प्रयोग करके देख सकते हैं। एम्फेसिस का फर्क है। जब आप कुर्सी पर वजन डाल कर बैठते हैं, तो कुर्सी सब कुछ हो जाती है, आप सिर्फ लटके रह जाते हैं कुर्सी पर, जैसे एक खूंटी पर कोट लटका हो। खूंटी टूट जाए, कोट तत्काल जमीन पर गिर जाए। कोट की अपनी कोई केंद्रीयता नहीं है, खूंटी केंद्र है। आप कुर्सी पर बैठते हैं – लटके हुए कोट की तरह। आप थक जाएंगे। क्योंकि आप चैतन्य मनुष्य का व्यवहार नहीं कर रहे हैं और एक जड़ वस्तु को सब कुछ सौंपे दे रहे हैं। कुर्सी पर बैठो जरूर, लेकिन फिर भी अपनी नाभि में ही समाए रहो। सब कुछ नाभि पर टांग दो। और घंटों बीत जाएंगे और आप नहीं थकोगे।
अगर कोई व्यक्ति अपनी नाभि के केंद्र पर टांग कर जीने लगे अपनी चेतना को, तो थकान – मानसिक थकान – विलीन हो जाएगी। एक अनूठा ताजापन उसके भीतर सतत प्रवाहित रहने लगेगा। एक शीतलता उसके भीतर दौड़ती रहेगी। और एक आत्मविश्वास, जो सिर्फ उसी को होता है जिसके पास केंद्र होता है, उसे मिल जाएगा।
तो पहली तो इस साधना की व्यवस्था है कि अपने केंद्र को खोज लें। और जब तक नाभि के करीब केंद्र न आ जाए – ठीक जगह नाभि से दो इंच नीचे, ठीक नाभि भी नहीं – नाभि से दो इंच नीचे जब तक केंद्र न आ जाए, तब तक तलाश जारी रखें। और फिर इस केंद्र को स्मरण रखने लगें। श्वास लें तो यही केंद्र ऊपर उठे, श्वास छोड़ें तो यही केंद्र नीचे गिरे। तब एक सतत जप शुरू हो जाता है – सतत जप। श्वास के जाते ही नाभि का उठना, श्वास के लौटते ही नाभि का गिरना – अगर इसका आप स्मरण रख सकें।
कठिन है शुरू में। क्योंकि स्मरण सबसे कठिन बात है। और सतत स्मरण बड़ी कठिन बात है। आमतौर से हम सोचते हैं कि नहीं, ऐसी क्या बात है? मैं एक आदमी का नाम छह साल तक याद रख सकता हूं।
यह स्मरण नहीं है यह स्मृति है। इसका फर्क समझ लें। स्मृति का मतलब होता है, आपको एक बात मालूम है, वह आपने स्मृति के रेकार्डींग को दे दी। स्मृति ने उसे रख ली। आपको जब जरूरत पड़ेगी, आप फिर रिकार्ड से निकाल लेंगे और पहचान लेंगे। स्मरण का अर्थ है सतत, कांसटेंट रिमेंबरिंग
Use meditation, sit, focus on the navel. Get up, take care of the navel.
Do anything, but your consciousness should revolve around the navel. Become a fish and keep moving around the navel. And soon you will find that a new powerful consciousness has been born within you.
It has amazing results. It has many uses. You are sitting here on a chair. Your sitting posture is wrong. That’s why you get tired. Don’t sit on the chair. It doesn’t mean don’t sit on the chair, sit down. Sit on the chair, but don’t put weight on the chair. Put the weight on your navel.
You can try it out right here. There is a difference of emphasis. When you sit on a chair with weight, the chair becomes everything, you just hang on the chair, like a coat hanging on a peg. If the peg breaks, the coat immediately falls to the ground. The coat has no centrality of its own, the peg is the center. You sit on a chair – like a hanging coat. you will be tired Because you are not behaving like a living being and handing over everything to an inert object. Do sit on the chair, but still remain merged in your navel. Hang everything on the navel. And the hours will pass and you will not get tired.
If a person starts living by hanging his consciousness at the center of his navel, then the fatigue – the mental fatigue – will disappear. A unique freshness will start flowing continuously within him. A coldness will keep running inside him. And a confidence that only one who has the center will get.
So the first method of this meditation is to find your center. And keep looking until the center comes close to the navel – the exact spot two inches below the navel, not even the navel exactly – two inches below the navel. And then start remembering this center. When you inhale, this center rises up, when you exhale, this center falls down. Then a continuous chanting starts – continuous chanting. The rise of the navel as soon as the breath goes, the fall of the navel as soon as the breath returns – if you can remember this.
It is difficult in the beginning. Because remembrance is the most difficult thing. And continuous remembrance is a very difficult thing. Usually we think no, what is such a thing? I can remember a man’s name for six years.
This is not remembrance, this is memory. Understand its difference. Smriti means, you know one thing, you gave it to Smriti’s recording. Smriti holds it. When you need it, you can then extract it from the record and identify it. Smaran means constant remembering