मैं अपनी मैं को क्या देखता हूं ?
जब मैं अपनी मैं को मैं देह हूं देखता हूं तो मैं पैदा होता हूं तथा मरता हूं !
जब मैं अपनी मैं को मैं ज्ञान इन्द्रियां हूं देखता हूं तो मैं अंधा बहरा होता हूं !
जब मैं अपनी मैं को मैं मन हूं देखता हूं तो मैं सुखी दुखी होता हूं !
जब मैं अपनी मैं को मैं बुद्धि अर्थात समझदार हूं देखता हूं तो मैं ज्ञानी तथा अज्ञानी होता हूं !
जब मैं अपने को अंहकार अर्थात एक जगह सीमित देखता हूं तो मैं छोटा या बड़ा होता हूं !
यदि मुझे पैदा होने से तथा मरने से,अंधा तथा बहरा होने से,सुखी तथा दुखी होने से, ज्ञानी तथा अज्ञानी होने से, छोटा तथा बड़ा होने से मुक्त होना है तो _ मुझे जानना होगा कि मैं देह नहीं हूं, मैं इन्द्रियां नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं, मैं बुद्धि नहीं हूं तथा मैं अंहकार भी नहीं हूं बल्कि
मैं इन सबका साक्षी हूं !
मुझे अपनी मैं को सभी तरफ से हटा कर__
मैं साक्षी हूं देखने की साधना करनी पड़ेगी !
जय श्री राम
साक्षीभाव
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