. देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन देवता स्वर्ग लोक से उतरकर दीपदान करने पृथ्वी पर आते हैं, इसलिए इस दिन को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। धर्म नगर काशी में इस दिन गंगा स्नान, पूजन, हवन और दीपदान का कार्यक्रम किया जाता है। पूरी काशी को रौशनी से सजाया जाता है और घाटों को दीप जलाकर जगमगाया जाता है। इस सुंदर नजारे को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग काशी आते हैं। काशी में देव दीपावली मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करके देवताओं को स्वर्ग वापस लौटाया था। तारकासुर के वध के बाद उसके तीनों पुत्रों ने देवताओं से बदला लेने का प्रण किया। उन्होंने ब्रह्माजी की तपस्या की और सभी ने एक-एक वरदान मांगा। वरदान में उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि जब ये तीनों नगर अभिजित नक्षत्र में एक साथ आ जाएं तब असंभव रथ, असंभव बाण से बिना क्रोध किए हुए कोई व्यक्ति ही उनका वध कर पाए। इस वरदान को पाए त्रिपुरासुर अमर समझकर आतंक मचाने लगे और अत्याचार करने लगे और उन्होंने देवताओं को भी स्वर्ग से वापस निकाल दिया। परेशान देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे। भगवान शिव ने काशी में पहुंचकर सूर्य और चंद्र का रथ बनाकर अभिजित नक्षत्र में उनका वध कर दिया। इस खुशी में देवता काशी में पहुंचकर दीपदान किया और देव दीपावली का उत्सव मनया। देव दीपावली को लेकर दूसरी मान्यता है कि देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं और बैकुण्ठ चतुर्दशी को भगवान शिव से मिलन करते हैं। इस खुशी में देवी-देवता काशी में आकर घाटों पर दीप जलाते हैं और खुशियां मनाते हैं। इस उपलक्ष्य में काशी में विशेष आरती का आयोजन किया जाता है
। "जय जय श्री राधे"
, The day of Dev Deepawali Kartik Purnima has special significance in Sanatan Dharma. On this day the deities descend from heaven and come to earth to donate lamps, hence this day is also known as Dev Deepawali. This festival is celebrated on the day of Kartik Purnima, 15 days after Diwali. Ganga bath, worship, havan and lamp donation program is done on this day in Dharmanagar Kashi. The entire Kashi is decorated with lights and the ghats are lit by lighting lamps. A large number of people come to Kashi to see this beautiful sight. There is a legend behind celebrating Dev Deepawali in Kashi. According to the legend, Kartikeya, the son of Lord Shiva and Mother Parvati, killed Tarakasura and returned the gods to heaven. After killing Tarakasur, his three sons vowed to take revenge on the gods. He did penance to Brahma and everyone asked for a boon each. In the boon, he said that he said that when these three cities come together in Abhijit Nakshatra, then only a person can kill them without getting angry with the impossible chariot, impossible arrow. Considering this boon to be immortal, Tripurasur started creating terror and atrocities and he also expelled the deities from heaven. The troubled deities reached the shelter of Lord Shiva. After reaching Kashi, Lord Shiva made a chariot of Sun and Moon and killed them in Abhijit Nakshatra. In this happiness, the deity reached Kashi and donated a lamp and celebrated the festival of Dev Deepawali. Another belief about Dev Deepawali is that on Uthani Ekadashi, Lord Vishnu wakes up from the sleep of Chaturmas and meets Lord Shiva on Baikuntha Chaturdashi. In this happiness, the deities come to Kashi and light lamps on the ghats and celebrate happiness. Special aarti is organized in Kashi on this occasion. “Jai Jai Shree Radhe”