कार्तिक माह महात्म्य अध्याय-15

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सुख भोगे जो कथा सुने विश्वास

पंद्रवा अध्याय लिखे यह दास

राजा पृथु ने नारद जी से पूछा:-
हे नारद जी !
तब दैत्यराज ने क्या किया? वह सब मुझे विस्तार से सुनाइये ।

नारद जी ने बताया कि उनके चले जाने पर जलन्धर ने अपने राहू नामक दूत को बुला कर कैलाश पर जाने की आज्ञा दी और कहा कि वहाँ पर एक जटाधारी शम्भु नामक योगी रहता है।

उस से मेरा ऐश्वर्य कह कर उसकी सर्वाङ्ग सुन्दरी भामिनी को मेरे लिये माँग लाओ। यह सुनकर वह दूत शिवजी के स्थान पर पहुँचा,

परन्तु नन्दी ने उसे सभा के भीतर नहीं जाने दिया किन्तु वह अपनी उग्रता से शिव की सभा में चला गया और शंकर के आगे बैठ कर उनकी आज्ञा ले सब सन्देश कह सुनाया।

फिर तो राहू नामक दूत के ऐसा कहते ही भगवान शूलपाणि के आगे पृथ्वी फोड़ कर एक शब्द वाला पुरुष प्रकट हो गया जिसका सिंह के समान मुख था और जो कि मानों दूसरा नृसिंह था ।

वह दौड़ कर राहू को खाने चला तो राहू बड़े जोर से भागा परन्तु उस पुरुष ने राहू को पकड़ लिया।

फिर उसने शिवजी की शरण ले अपनी रक्षा माँगी शिवजी ने उस पुरुष से राहू को छोड़ देने को कहा। उसने कहा मुझे बड़े जोर की भूख लगी है मैं क्या खाऊं?

तब महेश्वरी ने कहा-यदि तुझे भूख लगी है तो शीघ्र ही अपने हाथ-पैरों का मांस भक्षण कर ले।

शिवजी की आज्ञा से वह पुरुष अपने हाथ और पैर का मांस भक्षण कर गया। अब केवल उसका सिर मात्र शेष रह गया।

तब उसका ऐसा कृत्य देख शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे अपना आज्ञाकारी मान कर अपना परम प्रिय गण बना लिया और कहा कि मेरी पूजा की तरह अब तेरी भी सदैव पूजा होती रहेगी और जो मेरी पूजा नहीं करेंगे वह मेरे प्रिय न होंगे।

शिवजी से ऐसा वर पाकर उस पुरुष को बड़ी प्रसन्नता हुई।

उस दिन से वह शिवजी द्वारा ‘स्वीकृति मुख’ नामक गण हो कर स्थित रहने लगा ।

जय श्रीराधे कृष्णा

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