भक्त और सज्जन का मिलन

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तुम्हे एक भक्त और एक सज्जन व्यक्ति से मिलन का भेद बताती हूँ। एक सज्जन जब अपने मित्र से  रिश्तेदार से बहुत समय के बाद मिलता है तब अपने चेहरे पर बहुत ही खुशी के भाव प्रकट करता है ।और बहुत अपनापन दिखाता है। वह उससे परिचय के रूप में घर गृहस्थी की एक एक बात पुछकर उसके दिल को चोट पहुंचाने की कोशिश करता है।वह धन के तराजू पर मित्र को तोलता है। सज्जन के व्यवहार में प्रेम का दिखावा है स्थाई नहीं है। एक भक्त सन्त महात्मा जब किसी से मिलते हैं तब वे दिल को दुखाने वाले एक भी question नहीं करते हैं ।अपने मित्र के हृदय को प्रभु प्राण नाथ के प्रेम से परीपुरण करतें है।सन्त अपने परिजन के दिल को वास्तविक सत्य से परिचय कराते हैं। एक व्यक्ति को जगत भी भक्त तब तक नहीं कहता है। जब तक भगवान अमुक व्यक्ति की करोड़ों बार परिक्षा न ले ले।

यह जीवन की सच्चाई है। एक दिन भी हम थोड़े कमजोर हो जाते हैं। तब घर वाले सबसे पहले दुत्कारते है। जिसके साथ भगवान् खङा होता है। असली जीवन का आनंद प्राप्त करता है। भगवान् जिसके अन्दर बैठे होते हैं। उसके लिए हर ठोकर वरदान बन जाती है। क्योंकि उसके पास अध्यात्मिक तराजू होती है। भक्त हर हर कठिनाई को दुख सुख को अध्यात्मिक तराजू से तोलता है।अध्यात्म की तराजू सत्य का लेखा है। एक अध्यात्मिक के लिए सुख दुख समान है। एक अध्यात्मिक जानता है संसार में जो दुख दिखाई देता है उसजय श्री राम
अनीता गर्ग

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