हम प्रसन्नचित्त रहे

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आज व्यक्ति के पास सबकुछ है। पैसे की भी कमी नहीं है फिर भी प्रसन्न नहीं है क्यों क्योंकि मै और मेरापन व्यक्ति के जीवन में समा गया है प्रसन्नता कोई तुम्हें नहीं दे सकता, ना ही बाजार में किसी दुकान पर जाकर पैसे देकर आप खरीद सकते हैं। अगर पैसे से प्रसन्नता मिलती तो दुनिया के सारे अमीर खरीद लेते।
प्रसन्नता जीवन जीने के ढंग से आती है। जिंदगी भले ही खूबसूरत हो लेकिन जीने का अंदाज खूबसूरत ना हो तो जिंदगी को बदसूरत होते देर नहीं लगती। हमारे जीवन की खुशी कर्म में छुपी हुई है। हमे प्रसन्न रहने के लिए अपने विचारों को पढना होता है। जब तक हम अपनी दृष्टि को अपने ऊपर नहीं डालेंगे तब तक हम निराशा के अधिन होते रहेंगे। जैसे ही अपने आप को पढते अपने ऊपर दृष्टि डालते हैं क्षण भर में हमारे सोच में परिवर्तन आ जाता है।

आज के समय में वह व्यक्ति दुखी नहीं है जो गरीब हैं क्योंकि गरीब व्यक्ति मेहनत करना जानता है उसके पास कर्म धन की पुंजी है।जिसके पास कर्म धन है वह हर परिस्थिति में डटा हुआ है प्रसन्नचित्त है आज वह समाज दुखी हैं जिसने धन को सर्वोपरि मान लिया है कि धन से हम बहुत सुख खरीद सकते हैं। वह किसी भी चीज से शान्त नहीं है और और की टेर इन्सान को जीने नहीं देती है।क्योंकि वह सुख के साधनों में जीवन का सुख ढुंढता है। सुख के साधनों से शान्ती नहीं मिलती है। शान्ति के लिए हमें अपने अन्तर्मन को टटोलना होता है।

झोंपड़ी में भी कोई आदमी आनन्द से लबालब मिल सकता है और कोठियों में भी दुखी, अशांत, परेशान आदमी मिल जायेगा।
आज से ही सोचने का ढंग बदल लो जिंदगी उत्सव बन जायेगी। स्मरण रखना संसार जुड़ता है त्याग से और बिखरता है स्वार्थ से।
!!!…”जीवन” वो पाठशाला है जहां
हर व्यक्ति एक “शिक्षक” ओर
हर “घटना” एक “सबक”है…

जय श्री राम अनीता गर्ग

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