मन का धोखा

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श्री हरिवंश जय श्री गुरुदेव भगवान
एक मन के कारण ही सारा संसार धोखा खा रहा है सारा संसार मन के जाल में फँसा हुआ है इस मन के कारण ही सभी जीव कष्ट भोग रहे है मन एक होते हुए भी अनन्त रूप धारण कर जीवों को ठगता है यह चतुर और चंचल मन किसी की भी पकड़ में जल्दी नहीं आता क्योंकि इस निराकार मन की कोई छाया तक नही दिखती त्रिकुटी में निवास करने वाला यह मन समस्त त्रिलोकी में दौड़ लगता है यह पल-पल में कपट की अनेक चाले चलता है काम और क्रोध इसके दो बड़े प्रबल योद्धा है मन ही अनेक प्रकार के कर्मकाण्डों का जाल फैलाकर जीवों को बाहरी धर्म-कर्म में उलझाता है यह मन ही अति चंचल और चतुर है जो छिपकर काम करता है यह कभी मुलायम तो कभी कठोर भी है यह संसार में अगणित रूप धारण करता है यह पल भर में निकट होता है तो अगले ही क्षण दूर हो जाता है उसे कोई नही देख पाता पर वह सभी की चोरी करता है इस चालक मन की पहचान केवल सतगुरु की शरण में जाने से ही जीव को होती है गुरु के शब्द या नाम की युक्त्ति से ही मन वश में आ जाता है जिसे मन की पहचान हो जाती है वही जीव सदा निर्मल रह सकता है……श्री राधेश्याम



Shri Harivansh Jai Shri Gurudev Bhagwan It is because of one mind that the whole world is being deceived; the whole world is trapped in the web of the mind; it is because of this mind that all living beings are suffering. It also does not come in a hurry, because no shadow of this formless mind is visible, this mind that resides in Trikuti starts running in all the triloki, it plays many tricks of deceit from moment to moment, lust and anger are its two great warriors. It is the mind that spreads the web of many rituals and entangles the living beings in external religious activities. If I am near, then the very next moment it is far away, no one can see it, but it steals everyone, this driving mind is recognized only by going to the shelter of the Satguru, the soul gets to know only by the word or name of the Guru. The mind comes under control, the one who is recognized by the mind, that soul can always remain pure……Shri Radheshyam

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