मां गंगा का सफर गौमुख से हरिद्वार तक



उत्तराखंड देवभूमि है। यहां पंच प्रयाग में दर्शन से जीवन में उल्लास आता है।

ये प्रमुख पंच प्रयाग हैं👉 विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग।

यह पंच प्रयाग उत्तराखंड की मुख्य नदियों के संगम पर हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नदियों का संगम बहुत ही पवित्र माना जाता है। इन पंच प्रयागों का पवित्र जल एक साथ अलकनंदा और भगीरथी का जल भगवान श्रीराम की तपस्थली देवप्रयाग में मिलता है और यहीं से भगीरथी और अलकनंदा का संगम गंगा के रूप में अवतरित होता है।

उत्तराखंड के हिमालय के क्षेत्र के पंच प्रयाग यानी संगम को सबसे पवित्र माना गया है, क्योंकि गंगा, यमुना सरस्वती और उनकी सहायक नदियों का उत्तराखंड देवभूमि उद्गम स्थल है। जिन जगहों पर इनका संगम होता है उन्हें प्रमुख तीर्थ माना जाता है। जिनमें स्नान का विशेष महत्व है और इन्हीं संगम स्थलों पर पूर्वजों के मोक्ष के लिए श्राद्ध तर्पण भी किया जाता है।

विष्णुप्रयाग
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बद्रीनाथ से होकर निकलने वाली विष्णु प्रिया अलकनंदा नदी और धौली गंगा नदी का जोशीमठ के नजदीक जिस स्थान पर मिलन होता है इन दोनों नदियों के उस पवित्र संगम को विष्णु प्रयाग कहते हैं। इस पवित्र संगम पर भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर है। यह या पवित्र संगम तल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर है। स्कंदपुराण में विष्णुप्रयाग की महिमा बताई गई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस संगम की प्रमुख नदियों धौलीगंगा और अलकनंदा में पांच-पांच कुंड हैं। यहीं से सूक्ष्म बदरिकाश्रम प्रारंभ होता है। इसी स्थान पर दाएं जय और बाएं विजय दो पर्वत स्थित हैं, जिन्हें विष्णु भगवान के द्वारपालों के रूप में जाना जाता है।

नंदप्रयाग
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अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम को नंदप्रयाग कहते हैं। यह समुद्र तल से 2805 फुट की ऊंचाई पर है। पौराणिक कथा के मुताबिक इस स्थान पर मंदाकिनी और अलकनंदा के संगम स्थल पर नंद महाराज ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए और पुत्र की प्राप्ति की कामना के लिए कठोर तप किया था। यहां पर नंदादेवी का दिव्य और भव्य मंदिर है। नन्दा का मंदिर, नंद की तपस्थली एवं नंदाकिनी के संगम के कारण इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा।

कर्णप्रयाग
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अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों का संगम स्थल कर्णप्रयाग के नाम से विख्यात है। पिण्डर नदी को कर्ण गंगा भी कहा जाता है। इसलिए इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर स्थित है। संगम स्थल पर मां भगवती उमा का अत्यंत प्राचीन मंदिर है। कहते हैं कि यहां पर दानवीर कर्ण ने कठोर तपस्या की थी और यहां पर संगम से पश्चिम दिशा की तरफ शिलाखंड के रूप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं। कर्ण की तपस्थली होने के कारण ही यह पवित्र पावन स्थान कर्णप्रयाग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

रुद्रप्रयाग
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मंदाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है। संगम स्थल क्षेत्र में चामुंडा देवी व रुद्रनाथ मंदिर है। मान्यता है कि नारद मुनि ने इस पर संगीत के रहस्यों को जानने के लिये रुद्रनाथ महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। पौराणिक मान्यता है कि यहां पर ब्रह्मा की आज्ञा से देवर्षि नारद ने कई वर्षों तक भगवान शंकर की तपस्या की थी भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर नारद को सांगोपांग गांधर्व शास्त्र विद्या से पारंगत किया था। यहां पर भगवान शंकर का रुद्रेश्वर नामक लिंग है। यहीं से केदारनाथ के लिए तीर्थ यात्रा शुरू होती है।

देवप्रयाग
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देवप्रयाग में अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों का संगम है। देवप्रयाग समुद्र तल से 1500 फुट की ऊंचाई पर है। गढ़वाल क्षेत्र में भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। देवप्रयाग में शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं। रघुनाथ मंदिर द्रविड़ शैली से निर्मित है। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। स्कंद पुराण के केदारखंड में इस तीर्थ ब्रह्मपुरी क्षेत्र कहा गया है लोक कथाओं के अनुसार देवप्रयाग में देव शर्मा नामक ब्राह्मण ने सतयुग में निराहार सूखे पत्ते चबाकर तथा एक पैर पर खड़े रहकर कई वर्षों तक कठोर तप किया और भगवान विष्णु के दर्शन कर वर प्राप्त किया।

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