ऊं नमः शिवाय श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः!!ॐ
श्री काशी विश्वनाथ विजयते🙏*
अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥
अर्थ:- आठ गुण मनुष्य को सुशोभित करते है – बुद्धि, अच्छा चरित्र, आत्म-संयम, शास्त्रों का अध्ययन, वीरता, कम बोलना, क्षमता और कृतज्ञता के अनुसार दान।
देहदृष्टया तु दासोऽहं जीव दृष्टया त्वदंशक:।
आत्मदृष्टवा त्वमेवाहमिति में निश्चिता मति:।।
अर्थ:- देह दृष्टि से मैं आपका दास हूं और जीवन दृष्टि से मैं आपका अंश हूं तथा परमार्थरूपी आत्मदृष्टि से देखा जाए तो जो आप हैं, वही मैं हूं- ऐसी मेरी निश्चित धारणा है। *“सब ते सेवक धर्म कठोरा”*
मङ्गल हो आप सभी अध्यात्म मार्ग के पथिकों का