प्रभु संकीर्तन 33

IMG

ऊं नमः शिवाय श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः!!ॐ

श्री काशी विश्वनाथ विजयते🙏*

अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥

अर्थ:- आठ गुण मनुष्य को सुशोभित करते है – बुद्धि, अच्छा चरित्र, आत्म-संयम, शास्त्रों का अध्ययन, वीरता, कम बोलना, क्षमता और कृतज्ञता के अनुसार दान।

देहदृष्टया तु दासोऽहं जीव दृष्टया त्वदंशक:।
आत्मदृष्टवा त्वमेवाहमिति में निश्चिता मति:।।

अर्थ:- देह दृष्टि से मैं आपका दास हूं और जीवन दृष्टि से मैं आपका अंश हूं तथा परमार्थरूपी आत्मदृष्टि से देखा जाए तो जो आप हैं, वही मैं हूं- ऐसी मेरी निश्चित धारणा है। *“सब ते सेवक धर्म कठोरा”*

मङ्गल हो आप सभी अध्यात्म मार्ग के पथिकों का

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *