सखी हों राधा चरण उपासी।
नित रहूँ गरवीली मन में, करती नित्त खवासी ॥
सेवाकुञ्ज की सघन लता में, सदा बनी सुखरासी ।
सर्वस ‘श्रीगोपाल’ प्रिया की, बनी रहूँ निज दासी ॥
श्री राधा की एक अंतरंग सखी दूसरी सखी से कहती है: हे सखी, मैं तो श्री राधा चरणों की ही दृढ़ उपासी हूँ । उनके चरणों के अनन्य बल के गर्व से ही दिन रात भरी रहती हूँ एवं उनकी ही निज सेवा में मैं नित्य लगी रहती हूँ ।
सुख की राशि श्री राधा सदा सेवा कुंज की सघन लताओं में विहार करती हैं । श्री गोपाल दास जी कहते हैं कि मैं भी सेवा कुंज में ही उनकी सदा दासी बनी रहती हूँ ।