संसार में किसी का भी सहारा लो,चाहे वो पति का,मां का,पत्नी का देवी देवता अवतारों का शास्त्रों, ग्रंथों का,सहारा छूटेगा
वो सहारा तो रात को ही छूट जाता है जब तुम सो जाते हो
कब तक दूसरे के कंधे पर रख कर बन्दूक चलाओगे
मजा तो जब हैं,जब तुम्हारे हाथ में बंदूक हो
पराधीनता दुख महा सुख जग में स्वाधीन
तुलसी सब सुख होता है अपने ही अधीन
पराधीन सपनेहु सुख नाही
करहि बिचार देख मन माहीं
इसलिए
आपन तेज संभारो आपे
तीन लोक हांक ते कांपे
कहीं से भी उधार की ली हुई चीज हो,चाहे वो धन हो,गहना हो, फर्नीचर,किताबें या ज्ञान हो
उसमें सिरदर्दी, अहसान,ओर भय, चिंता बनी रहती है।
उसमें आत्म विश्वास नहीं होता
दूसरों से ली हुई कोई भी वस्तु पद पदार्थों ही क्यों न हो
वो बंधन ही है।
दूसरों से लिया हुआ ज्ञान भी बंधन है।
इसलिए
जो भी तुमने किसी की भी वस्तु ली है उसे वापस करके ही चैन ,शांति मिलेगी
इसलिए
दूसरों से लिया गया ज्ञान भी छोड़ दो
और खुद में खुद की तलाश करो
जब तुम खुद में खुद की ही तलाश करोगे तो तुम खुद ही खुद को पाओगे
वहां कोई दूसरा नहीं होगा
तुम्हारे खुद का स्व स्वरूप दूसरे में कहा से मिलेगा
चाहे वो गुरू ही क्यों न हो
जब तुम खुद से ही अपना परिचय करोगे तब सब पदार्थ वस्तुओं में खुद को ही देखोगे
वो तुम्हारी ही चेतना है।
तुम्हारी ही चेतना से ये सारा संसार चेतन्य हो रहा है।
यही तुम्हारी असली सम्पदा है।तुम्हीं इस सम्पदा के सम्राट हो इतने बड़े सम्राट होकर भी तुम दूसरों से अपेक्षा रखते हो तुम भिखारी हो
जो उधार ले रहे हो
तुम पहले से ही मालामाल हो
यही तुम्हारा निजत्व है।
जो तुम्हें किसी और से नहीं मिल सकता