बहुत कठिन होता है
मन को.. इन्द्रियों को संयम में रखना।
कई बार छोटी छोटी सी बातें
विचलित कर देती हैं…
फिर संसार के प्रलोभन भी तो बहुत लुभावने होते हैं
बड़ों बड़ों की तपस्या भंग कर देते हैं …
अगर प्रलोभन सताते हैं तो समझिये, जनाब
अभी तैयारी अधूरी है।
बाहर को छोड़ कर भीतर की सोचिए
भजन सिमरन और ध्यान की मात्रा बढ़ा दें…
तभी जीवन में आनंद संभव है
यही एक मार्ग है…
इसके अलावा और कोई रास्ता भी नही है.. सब दुःखों की एक ही् दवा है…
“भजन सिमरन और ध्यान”
जय श्री राम जय श्री कृष्ण शुभ प्रभात