||जय श्रीकृष्ण||मित्रों, सुप्रभातम्
नदी के बहाव में हर वो वस्तु बह जाती है जो नियंत्रण से बाहर हो, जिसे किसी ने नियंत्रित कर लिया वही बच पाता है..अन्यथा बहाव में बह ही जाना है..!! हमारे जीवन में भी बहुत से ऐसे सम्बंध समय के बहाव में बहे जा रहे हैं..निरंतर.. दिशाहीन..!! ऐसे सम्बन्धों का कुछ ज्ञान नहीं ⁉️ कि किस ओर जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं, आगे क्या परिणाम होने वाले हैं.. कुछ अनुमान नहीं..!! बस समय के बहाव में स्वतंत्र बहे जा रहे हैं, अनियंत्रित होकर। स्मरण रहे, ऐसे सम्बन्धों से अपनत्व की, समर्पण की, सत्य प्रेम-भाव 1 की आशा बनाये रखना कष्टदायी हो सकता है, बहता हुआ जब तक किनारे न लगे, एक संशय स्वरूप ही होता है..!!.क्रमशः..!!
प्रसन्न रहें !! एक बार प्रेम से अवश्य कहें/जय जय श्रीराधेकृष्णा, जय जय सियाराम!!!