हे गोविंद…
प्रेम हमेशा ही पूर्ण होता है, प्रेम में कहां अधूरापन बचता है..?
इसके मिलन और विरह दोनो ही आयाम हैं।
मिलन में गोविंद तुम सामने होते हो…
विरह में तो तुम रोम – रोम में…रग – रग में होते हो…!
हरे कृष्ण…
हे गोविंद…
प्रेम हमेशा ही पूर्ण होता है, प्रेम में कहां अधूरापन बचता है..?
इसके मिलन और विरह दोनो ही आयाम हैं।
मिलन में गोविंद तुम सामने होते हो…
विरह में तो तुम रोम – रोम में…रग – रग में होते हो…!
हरे कृष्ण…