अपने प्यारे प्रेमी भक्तोंको प्रफुल्लित करनेके लिये प्रभु प्रफुल्लित होते हैं । प्रेममें भी यही स्थिति होती है,प्रेमी और प्रेमास्पद दोनों प्रेममय हो जाते हं। । प्रेम ही उन दोनोंका स्वरूप हो जाता है । एक हुए ही दो-से दीखते हैं । भगवान् भक्तके जीवन हैं, प्राण हैं, प्रेम हैं, धन हैं, शान्ति हैं, सर्वस्व हैं । इसी प्रकार भक्त भगवान् के लिये है ।
सुविचार 56
- Tags: प्रभु संकीर्तन, मीराबाई, सुविचार, स्त्रोत कथाएँ
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